________________
३१६
तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
सर्वार्थसंकलनवित्तिनिदानभूतनामादिसुन्यसितवस्तुविधानदक्षम् । शद्धार्थगोचरविवादविनाशकं द्राक्, तत्त्वार्थशास्त्रमनुगच्छत भो सुधीन्द्राः॥१॥... अब आगेके सूत्रका अवतरण करानेके लिये शंका उठाते हुए तर्कणा करते हैं---
ननु नामादिभिय॑स्तानामखिलपदार्थानामधिगमः केन कर्तव्यो यतस्तद्व्यवस्था अधिगमजसम्यग्दर्शनव्यवस्था च स्यात्, न चासाधना कस्यचिद्यवस्था सर्वस्य स्खेष्टतत्त्वव्यवस्थानुषंगादिति वदन्तं प्रत्याह सूत्रकार:
यहां शंका है कि नाम, स्थापना, द्रव्य और भावोंसे न्यस्त कर दिये गये सम्पूर्ण पदार्थोका निर्णय किससे करना चाहिये ? बतलाइये । जिससे कि लोकप्रसिद्ध नाम आदिकों करके व्यवहृत उन पदार्थोकी व्यवस्था हो सके तथा अन्यके उपदेश, या शास्त्रवाचनसे उत्पन्न हुए अधिगमजन्य सम्यग्दर्शनकी व्यवस्था बन सके । भावार्थ-चक्षुसे कुछ कुछ देखनेवाले पुरुष लिये उपनेत्र ( चश्मा ) उपयोगी होता है । सर्वथा अन्धेको उपनेत्र या दूरवीक्षक ( दूरवीन ) सहायक नहीं होते हैं, तैसे ही आत्माके किसी स्वपर प्रकाशक परिणाम द्वारा पदार्थोका निर्णय करचुकनेपर तो नाम आदिक सहकारी बन सकते हैं । ज्ञापक साधनके विना किसीकी व्यवस्था नहीं होती है। अन्यथा सर्वथा प्रमाणविरुद्ध बोलनेवाले सभी वादियोंके या मत्त, मूच्छित, और स्वप्नदर्शियोंके अपने अपने इष्टतत्त्वोंकी व्यवस्था होनेका प्रसंग हो जावेगा। इस प्रकार बोलनेवाले जिज्ञासुके प्रति तत्त्वार्थ सूत्रको रचनेवाले श्रीउमास्वामी महाराज उत्तर कहते हैं
प्रमाणनयैरधिगमः ॥६॥ वस्तुको सकलादेश द्वारा जाननेवाले स्वपरप्रकाशक प्रमाणोंसे और संज्ञीके उत्पन्न हुए वरत्वंशको विकलादेश द्वारा जाननेवाले श्रुतज्ञानांशरूप नयोंसे सम्यग्दर्शन आदि तथा जीव आदि सम्पूर्ण पदार्थोका निर्णय होता है। ____ सर्वार्थानां मुमुक्षुभिः कर्तव्यो न पुनरसाधन एवाधिगम इति वाक्यार्थः । कथमसौ तैः कर्तव्यः इत्याहः
इस सूत्रवाक्यका अन्य उपयोगी पदोंके उपरकार लेनेपर यह अर्थ हुआ कि मोक्षको चाहने वाले पुरुषोंको सम्पूर्ण अर्थोका प्रमाण और नयोंसे निर्णय कर लेना चाहिये । फिर तो विना ही ज्ञापक कारणके अधिगम नहीं किया जा सकता है । कोई भव्य कहता है कि वह अधिगम उन प्रमाण नयों करके कैसे करना चाहिये ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर आचार्य उत्तर कहते हैं।
सूत्रे नामादिनिक्षिप्ततत्त्वार्थाधिगमस्थितः । कात्य॑तो देशतो वापि स प्रमाणनयैरिह ॥ १॥