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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
पञ्चमसूत्रका सारांश ___ इस सूत्रके प्रकरणोंकी सूची संक्षेपसे इस प्रकार है कि प्रथम ही एक एक निक्षेपको माननेवाले एकान्तवादियोंके निराकरणार्थ और लोकप्रसिद्धिके अनुसार व्युत्पत्ति करानेके लिये नाम आदिक चारोंसे निक्षेपकी सिद्धि करनेवाले सूत्रका अवतार किया गया है। एक-एक या दो दोसे अथवा उलट पलट कर नाम आदिसे निक्षेपकी व्यवस्था नहीं है । जाति आदि निमित्तान्तरोंकी नहीं अपेक्षा करके संज्ञाकरणको नाम कहते हैं, उसके अनेक भेद हैं । नामनिक्षेपकी उत्पत्तिमें वक्ताका अभिप्राय निमित्त माना गया है । शब्दका वाच्य अर्थसे सम्बन्ध न माननेवाले बौद्धोंके सन्मुख सादृश्यरूप जातिकी सिद्धि की है । विशेषके समान जाति भी नित्य, अनित्य, है । जातिका व्यक्तिसे कथञ्चित् भेद है । जातिको सिद्ध करनेके लिये आचार्योका बौद्धोंके साथ अधिक ऊहापोह चला है । इसके अनन्तर पदका अर्थ जातिको ही स्वीकार करनेवाले मीमांसकोंके मन्तव्यका खण्डन किया है । वैयाकरणोंने गुणशद्व, क्रियाशद, आदिकोंका अर्थ भी जाति मान लिया है । आकाश, अभाव, आदिमें भी गौणरूपसे आकाशत्व, अभावत्व, आदि जातियोंको मानकर अपने एकान्तको पुष्ट किया है। इस मतका भी आचार्योने खण्डन कर दिया है। लक्षित लक्षणा, अर्थापत्ति, आदिसे व्यक्तिकी प्रतीति नहीं हो सकती है । इस प्रकरणका विचार अतीव सुन्दर है । अन्तमें मीमांसकों करके सामान्यविशेषात्मक पदार्थको ही शद्वका वाच्य अर्थ मानना पडा है । बौद्धोंसे सर्वथा विपरीत नित्यद्रव्यको ही शब्दका विषय कहने वालोंका निराकरण किया गया है । यहां उपाधि और औपाधिककी चर्चा करते हुए द्रव्यपदार्थवादियोंका एकान्त हटाया गया है । शद्बाद्वैतवादीको भी यहां मुंहकी खानी पडी है । केवल अपने रूपको ही कहनेवाला शद्वतत्त्व विद्याके अनुकूल होता हुआ दूसरोंके समझानेका उपाय नहीं हो सकता है, अन्यथा रूप, रस, आदिकोंका अद्वैत भी पुष्ट हो जावेगा। पदका वाच्य अर्थ ब्रह्माद्वैत भी नहीं है । बौद्धोंके अन्यापोहको सन्मुख कर अद्वैतवादका निरास कर दिया है । अविद्यासे अपोह होना आवश्यक है । इस प्रकार नित्य द्रव्यवादियोंका निरास कर विशेष व्यक्तिको ही शद्वका अर्थ कहनेवाले व्यक्तिपदार्थवादीका निराकरण किया है । जाति और व्यक्ति दोनों मिल करके भी शद्बका अर्थ नहीं हो सकते हैं। स्याद्वाद सिद्धान्तकी शरण लेनेपर मनोरथ सिद्ध हो सकते हैं । आगे केवल आकृतिको ही पदका अर्थ माननेवालोंका निवारण किया है । इस विषयमें दिये गये तर्क और उत्तर गम्भीरताको लिये हुये प्रशंसनीय हैं । इसके आगे अन्यापोहको शद्वका अर्थ माननेवाले बौद्धोंका विचार चलाया है । वक्ताकी इच्छा भी शद्वका अर्थ नहीं बन सकती है । यहांपर बौद्धोंकी ओरसे दी गयी जटिल युक्तियोंका बडी विद्वत्ताके साथ निराकरण करके शद्वजन्य ज्ञानकी प्रमाणता बतायी है । शद्वका वाच्य विषय वस्तुभूत है, जो कि जाति और व्यक्तियोंसे तादात्म्यसम्बन्ध रखता हुआ परमार्थवस्तु है । प्रत्यक्ष आदिकके समान शबसे भी वस्तुमें