________________
तलार्थकोकवार्तिके
पदार्थ विरोधियोंका विशेषण सिद्ध नहीं हो सका । अतः विरोध और विरोधियोंका तुम्हारे यहां विशेषणविशेष्यभाव न बन सका।
ननु च विरोधिनावेतौ समवायिनाविमौ नास्तीह घट इति विशिष्टप्रत्ययः कयं विशेषणविशेष्यभावमन्तरेण स्यात् । दण्डीति प्रत्ययवद्भवति चायमबाधितवपुर्न च द्रव्यादिषट्पदार्थानामन्यतमनिमित्तोऽयं तदनुरूपत्वापतीतेः, नाप्यनिमित्तः कदाचित्कचिद्भावात् । ततोऽस्यापरेण हेतुना भवितव्यमतो विशेषणविशेष्यभावः सम्बन्धशेषः पदार्यशेषेष्वविनाभाववदिति समवायवदभाववद्वा विरोधस्य कचिद्विशेषणत्वसिद्धौ तस्यापि विशेषणविशेष्यभावस्य स्वाश्रयविशेषायिणः कुतस्तद्विशेषणत्वम् । परस्माद्विशेषणविशेष्यभावादिति चेत् तस्यापि स्वविशेष्यविशेषणत्वं परस्मादित्यनवस्थादप्रतिपत्तिर्विशेष्यस्य विशेषणपतिपत्तिमन्तरेण तदनिष्टेः, नागृहीतविशेषणा विशेष्ये बुद्धिरिति वचनात् । सुदूरमपि गत्वा विशेषण विशेष्यभावस्यापरविशेषणविशेष्यभावाभावेऽपि स्वाश्रयविशेषणत्वोपगमे समवायादेरपिक विशेषणत्वं, तदभावेऽपि किं न स्यात् ? इति न विशेषणविशेष्यमावसिदिः। तदसिद्धौ च न किञ्चित्कस्यचिद्विशेषणमिति न विरोधो विरोधिविशेषणत्वेन सिद्धयति ।
तथा वैशेषिक पुनः अपने पक्षका अवधारण करते हुए कहते हैं कि अग्नि, जल या आतप, अन्धकार आदि ये दोनों विरोधी हैं । आत्मा ज्ञान या पुद्गलरूप ये दोनों समवाय वाले हैं। यहां घट नहीं है, आदि इस प्रकारकी विशिष्ट बुद्धियां विशेष्यविशेषणभावको माने विना भला कैसे हो सकेंगी ? जैसे कि दण्डवाला पुरुष है, यह ज्ञान किसी संयोग सम्बन्धके विना नहीं होता है । उक्त ज्ञानोंका यह पूर्णशरीर बाधाओंसे रहित प्रसिद्ध है। अर्थात् वैशेषिक जन विशेष सम्बन्धको सिद्ध करनेके लिये अनुमान बनाते हैं कि जो जो विशिष्ट बुद्धि होती हैं, वह विशेषण, विशेष्य और सम्बन्ध इन तीनोंको विषय करती है । जैसे कि दण्डी यह विशिष्ट बुद्धि दंण्डरूप विशेषण पुरुष रूप विशेष्य और संयोगरूप सम्बन्ध इन तीनको विषय कर लेती है । घट यह बुद्धि भी घट, घटत्व
और समवाय इन तीनोंको जान लेती हैं । तैसे ही विरोधी, समवायी, अभाववान्, ये ज्ञान . भी विशेष्य और विशेषणोंसे अतिरिक्त किसी मध्यवर्ती सम्बन्धके विना नहीं हो सकते हैं । इन ज्ञानोंका द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय इन छह भाव पदार्थों से कोई एक तो निमित्तकारण नहीं हो सकता है, क्योंकि उन द्रव्य आदिकोंके अनुसार होनेवाले ज्ञानोंकी सरूपता इन ज्ञानोंमें प्रतीत नहीं होती है । भावार्थ-द्रव्य आदिकोंको कारण मानकर होनेवाले ज्ञानोंसे विरोधी, समवायी, आदिक ज्ञान विलक्षण हैं । तथा विरोधी आदि ज्ञानोंको निमित्तके विना ही उत्पन्न हो गये भी नहीं कह सकते हैं क्योंकि वे ज्ञान कभी कभी और कहीं कहीं उत्पन्न होते हैं। कार्यमें देश,