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तत्वार्थ लोकवार्तिके
ठहर सकेंगे। कितनी भी महीन खुई क्यों न हो, उसकी नोंक आकाशके प्रदेशको अवश्य घेरेगी । सूक्ष्मऋजुसूत्रका विषय माना गया क्षणिक परिणाम भी सांश है । लोक सम्बन्धी नीचेके वातवलयसे ऊपरके वातवलयमें जानेवाला वायुकायका जीव या परमाणु एक समयमें चौदह राजू जाता है । अतः एक समयके भी असंख्यात अविभागप्रतिच्छेद माने गये हैं । संसारका कोई भी छोटेसे छोटा पूरा कार्य एक समयसे न्यूनकालमें नहीं होता है । चाहे मन्दगतिसे परमाणु एक प्रदेशका अतिक्रमण करे । चाहे शीघ्रतापूर्वक चौदह राजू गमन करे, किन्तु एक समय तो पूरे एक कार्यमें अवश्य लगेगा ही, अधूरा कार्य कोई वस्तु नहीं है । तभी तो वर्तनाके लक्षण में एक समयकी पलटनको पूरा अनुभव करना प्रत्येक पर्यायके लिये आवश्यक बताया है । " प्रतिद्रव्यपर्यायमन्तर्नीतैकसमया स्वसत्तानुभूतिर्वर्तना " ऐसा राजवार्तिकमें कथन है ।
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स तु भावो द्वेधा द्रव्यवदागमनोआगमविकल्पात् । तत्माभृतविषयोपयोगाविष्ट आत्मा आगमः जीवादिपर्यायाविष्टोऽन्य इति वचनात् ।
वह भावनिक्षेप तो द्रव्यनिक्षेपके समान आगमभावनिक्षेप और नोआगमभावनिक्षेपके भेद से दो प्रकारका है । उन जीव, चारित्र, आदि विषयोंका प्रतिपादन करनेवाले शास्त्रों के ज्ञानमें लगे हुए उपयोगसे तदात्मक हो रहा आत्मा तो आगमभावनिक्षेप है, और उसके सहायक जीवन, प्राणधारण, लब्धि, आदि पर्यायोंसे युक्त आत्मा दूसरा नोआगमभावनिक्षेप है । इस प्रकार आकरप्रन्थोंमें कहा है ।
कथं पुनरागमो जीवादिभाव इति चेत्, प्रत्ययजीवादिवस्तुनः सांप्रतिकपर्यायत्वात् । प्रत्ययात्मका हि जीवादयः प्रसिद्धाः एवार्थाभिधानात्मकजीवादिवत् । तत्र जीवादिविषयोपयोगाख्येन तत्प्रत्ययेनाविष्टः पुमानेव तदागम इति न विरोधः, ततोऽन्यस्य जीवादिपर्यायाविष्टस्यार्थादेन आगमभावजीवत्वेन व्यवस्थापनात् ।
फिर ज्ञानरूप आगमको जीव आदि भावनिक्षेपपना कैसे है ? ऐसा पूंछनेपर तो हम कहेंगे कि ज्ञानस्वरूप जीव आदि वस्तुओंको वर्तमान कालकी पर्यायपना है जिस कारणसे कि जीव आदि पदार्थ ज्ञानस्वरूप होते हुए प्रसिद्ध हो ही रहे हैं, जैसे कि अर्थ और शद्वरूप जीव आदिक हैं । भावार्थ —समन्तभद्र स्वामीने कहा है कि - " बुद्धिशद्वार्थसंज्ञास्तास्तिस्रो बुद्धयादिवाचिकाः " जगत् के व्यवहार में कोई भी पदार्थ होय, वह बुद्धि, शब्द और अर्थ इन तीन स्वरूपों में विभक्त हो सकता है । अग्नि कहनेसे तीन पदार्थ ध्वनित होते हैं । एक तो अग्नि यह शब्द है, दूसरा आत्मामें अग्निका ज्ञान है, तीसरा दाहकत्व या पाचकत्व आदि शक्तियोंसे युक्त पौद्गलिक अग्नि पदार्थ है । ऐसे घटमें भी समझ लेना । घट शब्द है, घटज्ञान है और घट अर्थ है, इन तीनके अतिरिक्त घट कुछ 66 या भी नहीं है । व्याकरण पढनेवालेसे घट पूंछा जावे तो " घटते इति घटः घटः घटौ घटाः इस प्रकार उसका लक्ष्यं घट शब्दकी ओर जावेगा । तथा कुम्हारके प्रति घट कहने से उसका
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