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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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अविरुद्ध अनेक आकार स्वीकार कर लिये हैं, किन्तु आप एकान्तवादी बौद्ध एक ज्ञानमें अनेक आकार मानेंगे तो आपको अपसिद्धान्त दोष लागू होगा और जैनमतकी पुष्टि हो जावेगी।
संविदि कल्पिताकारस्य भ्रान्तत्वाकमनेकाकारं विकल्पवेदनमिति चेत् न, भ्रान्तेतराकारस्य तदवस्थत्वात् ।।
सौगत बोलते हैं कि ज्ञानमें कल्पना किये गये अनेक आकार तो भ्रान्त हैं, अतः एक विकल्पज्ञान वास्तविक अनेक आकारवाला नहीं हुआ। हमारा एकान्त प्रतिष्ठित हो गया और जैनमतकी पुष्टि भी नहीं हो सकी, तुच्छ पदार्थ या अभाव पदार्थ अथवा कल्पित पदार्थोसे वस्तुमें बोझ नहीं बढता है। आचार्य समझाते हैं कि बौद्धोंको इस प्रकार तो नहीं कहना चाहिये । क्योंकि फिर भी भ्रान्त आकार और अभ्रांत आकार ये दो आकार एक विकल्पज्ञानमें वैसेके वैसे अवस्थित मान लिये गये । अर्थात् एक विकल्पज्ञानमें अनेक कल्पित आकारोंकी अपेक्षासे भ्रान्तपना है
और उपादान कारण माने गये ज्ञानके अनुसार स्वका संवेदन करना अभ्रान्त अंश है । यों तो फिर भी एक ज्ञानमें दो आकार रहे ही । वही अपसिद्धान्त दोष और जैन-सिद्धान्तकी पुष्टि लागू रही । अथवा ज्ञानमें अभ्रान्त आकार तो है ही और भ्रान्त आकार भी आपने मान लिये हैं । अतः अनेकान्त ही पुष्ट हुआ।
भ्रान्ताकारस्यासत्त्वे तदेकं सदसदात्मकमिति कुतो न सत्त्वसिद्धिः । यदि पुनरसदाकारस्याकिंचिद्रूपत्वादेकरूपमेव विकल्पवेदनमिति मतिः, तदा तत्र शद्धः प्रवर्तत इति न कचित् प्रवर्तत इत्युक्तं स्यात् । तथोपगमे च विवक्षाजन्मानो हि शद्धास्तामेव गमयेयुरिति रिक्ता वाचोयुक्तिः।
यदि विकल्पज्ञानमें जाने जारहे भ्रान्त आकारको असत् कहोगे तो भी वह एक ज्ञान सत् और असत् दो धर्मोसे तदात्मक सिद्ध हुआ । अर्थात् भ्रान्त आकार असत् है और शुद्ध ज्ञान आकार सत् है । फिर भी वही अपसिद्धान्त दोष और अनेकान्तकी पुष्टि बनी रही। इस प्रकार जैनोंके माने गये अनेक धर्मात्मक सत्पनेकी सिद्धि क्यों न होगी ? यानी अवश्य होगी। यदि फिर आप बौद्धोंका यह मन्तव्य होवे कि विकल्पज्ञानमें यों ही कोरे दीख रहे असत् आकार किसी भी स्वरूप नहीं है अवस्तु हैं शून्य हैं। अतः वह विकल्पज्ञान एक स्वरूप ही है, अनेकरूप वाला नहीं । तब तो हम जैन यों कहेंगे कि आपके उन कल्पित आकारोंमें शब्द प्रवृत्ति करता है, इससे यही कहा गया कि शब्द कहीं भी नहीं प्रवृत्ति करता है. यानी आपने शद्बकी प्रवृत्तिके विषय असत् पदार्थ मान लिये हैं और यदि तिस प्रकार शद्बके द्वारा कहीं भी प्रवृत्ति न होना तुम स्वीकार कर लोगे तो विवक्षाओंसे उत्पन्न होरहे सम्पूर्ण शब्द उन विवक्षाओंको ही समझावेंगे यह तुम्हारे वचनोंकी. योजना रीती ( खाली ) पडेगी। अर्थात् शब्दोंके द्वारा विवक्षाके कहे जानेमें आपके पास कोई युक्ति नहीं है, कोरी पावाद करना है। . 32