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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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युवा वृद्ध, यशः अपयश, अनेक प्रकारके विरुद्ध कार्य एक समयमें होते हुए जाने जा रहे हैं । वे सब एक ही काल द्रव्यसे नहीं हो सकते हैं, जैसे कि एक ही पृथिवीकी परमाणुसे उसी समय घट, पट, पुस्तक, सुगन्ध दुर्गन्धवाले पदार्थ, लोहा, चांदी, आदि पदार्थ नहीं बन सकते हैं। अतः अनेक परमाणु स्वीकार करने पडते हैं, तैसे ही एक समयमें अनेक विरुद्ध क्रियाओंको करनेवाले कालद्रव्य भी अनेक स्वीकार करने चाहिये।
खेन व्यभिचारीदं साधनमिति चेन्न, तस्यावगाहनक्रियामात्रत्वेन प्रसिद्धेस्तत्रानिमित्तत्वात् । निमित्तत्वे वा परिकल्पनानर्थक्यात तत्कार्यस्याकाशादेवोत्पत्तिघटनात् । परापरत्वपरिणामक्रियादीनामाकाशनिमित्तकत्वविरोधादवगाहनवत् ।
वैशेषिक कहते हैं कि कालद्रव्यको अनेकपन सिद्ध करनेके लिये दिया गया एक समयमें अनेक विरुद्ध क्रियाओंके करनेका सहकारी कारणपनारूप यह आप जैनोंका हेतु तो आकाश करके व्यभिचारी है । अर्थात् आकाशमें अनेक क्रियाओंको करानारूप हेतु रह जाता है और अनेकपना साध्य नहीं रहता है। आप जैन भी आकाशको एक ही द्रव्य स्वीकार करते हैं । अब आचार्य कहते हैं कि ऐसा तो न कहो। क्योंकि वह आकाश केवल अवगाहक्रियाका ही निमित्त कारणपनेसे प्रसिद्ध हो रहा है। कालके द्वारा की गयी उन अनेक विरुद्ध क्रियाओंमें आकाशनिमित्त कारण नहीं है । तथा यदि उन अनेक विरुद्ध क्रियाओंमें और संपूर्ण द्रव्योंको अवगाह देना रूप क्रियामें आकाशको ही निमित्त माना जावेगा तो स्वतंत्र कालद्रव्यकी चलाकर दृढतासे कल्पना करना व्यर्थ पडेगा । क्योंकि उस कालद्रव्यसे किये जानेवाले कार्योंकी आकाश द्रव्यसे ही उत्पत्ति होना घटित हो जावेगा। जैसे कि सब द्रव्योंको अवगाह देना आकाशका कार्य है तैसे ही अवस्था ( उम्र ) द्वारा किये गये परत्व ( जेठापन ) और अपरत्व ( कनिष्ठपना ) परिणाम ( अपरिरपन्दरूप भाव ) क्रिया ( हलन चलन परिस्पन्दरूप भाव ) और मुख्य कालका मुख्य कार्य वर्तना ( नवसे जर्णि करना ) ये जो कालद्रव्यके उपकार माने हैं इन सबका निमित्त कारण आकाश मान लेना चाहिये, कोई विरोध नहीं है।
परापरयौगपद्यायोगपद्यचिरक्षिप्रप्रत्ययलिंगः कालोन्य एवाकाशादिति चेत्, स्यादेवं यदि परत्वादिप्रत्ययनिमित्तत्वमाकाशस्य विरुध्येत । शब्दलिंगत्वादाकाशस्य तनिमित्तत्वं विरुध्यत एवेति चेन्न, एकस्यापि नानाकार्यनिमित्तत्वेन दर्शनात् स्वयमीश्वरस्य तथाभ्युपगमाच्च ।
औतूक्य दर्शनवाले कहते हैं कि हम वैशेषिकोंके मतमें कणादसूत्रके अनुसार कालकृत परत्व, अपरत्व की बुद्धि होना युगपत्पनेका ज्ञान होना, क्रमपनेका ज्ञान होना, अतिविलम्ब और शीघ्रपनेका प्रत्यय होना ये कालद्रव्यके व्यापकचिन्ह ( हेतु ) माने गये हैं। “ अपरस्मिन्नपरं युगपचिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि "| आकाश द्रव्य तो जगत्का केवल आधार है । आकाशमें अवगाह