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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
सिद्ध होरहा है, ( हेतु ) जैसे कि सच्चे गोत्र, वर्ण, जाति, वंशके वृद्ध परिपाटीसे चले आये हुए उपदेश आगम प्रमाणरूप हैं ( अन्वयदृष्टान्त )।
कुतस्तदातमूलत्वसिद्धिरिति चेत् सम्प्रदायाव्यवच्छेदस्याविरोधात् तद्वदेवेति ब्रूमः ।
सूत्रको आगमप्रमाण मानने आप्तको मूल कारण मानकर प्रवृत्त होना हेतु दिया है, वह हेतु सूत्रनामक पक्षमें कैसे सिद्ध है ! अर्थात् वह हेतु असिद्धहेत्वाभास है, ऐसी शंका करोगे तो उसका उत्तर हम ग्रंथकार इस प्रकार स्पष्टरूपसे देते हैं, कि गुरुपरिपाटीके न टूटनेका कोई विरोध नहीं है, कारण कि सर्वज्ञसे लेकर आजतक अव्यवधानरूपसे चली आयी हुयी गुरुपरिपाटीका प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे कोई विरोध उपस्थित नहीं हुआ है। जैसे कि वही जाति, गोत्र, वंश, आदिके कथनव्यवहार आजतक विना किसी रोक टोकक प्रामाणिक पद्धतिसं चले आरहे हैं।
कथमधुनातनानां नृपा तत्सम्प्रदायाव्यवच्छेदाविरोधः सिद्ध इति चेत् ? सगोत्राापदेशस्य कथम् ? । विचारादिति चेत् । मोक्षमार्गोपदेशस्यापि तत एव । कः पुनरत्र विचारः? सदोबाधुपदेशे क ? प्रत्यक्षानुमानागमः परीक्षणामत्र विचारोऽभिधीयते सोमवंशः क्षत्रियोऽ यमिति हि कश्चित्प्रत्यक्षतोऽतीन्द्रियादध्यवस्यति तदुच्चै!त्रोदयस्य सद्गोत्रव्यवहारनिमित्तस्य साक्षात्करणात्, कश्चित् कार्यविशेषदर्शनादनुमिनोति । तथाऽऽगमादपरः प्रतिपद्यते ततोऽप्यपरस्तदुपदेशादिति संप्रदायस्याव्यवच्छेदः सर्वदा तदन्यथोपदेशाभावात् । तस्याविरोधः पुनः प्रत्यक्षादिविरोधस्यासम्भवादिति, तदेतन्मोक्षमार्गोपदेशेऽपि समानम् ।
यहाँ मीमांसक कहते हैं कि अभी आजकल पर्यन्तके मनुष्योंतक उस आचार्यपरम्पराका विरोधरहित न टूटना कैसे सिद्ध मानोगे ? इस पर जैन कटाक्ष करते हैं कि यदि आप ऐसा कहोगे तो आप ही बतलाइये कि श्रेष्ठ माने गये गर्ग, काश्यप, रघुवंश आदि गोत्रों या जाति आदिके कथनमें भी आपने सम्प्रदायका न टूटना कैसे माना है ? बताओ, यदि आप मीमांसक इसका उत्तर ग्रह देंगे कि श्रेष्ठ गोत्रोंके उपदेशका प्राचीनपुरुषोंकी सम्मतिसे निर्णयात्मक विचार होता हुआ चला आरहा है, तो हम जैन भी कहते हैं कि मोक्षमार्गका उपदेश भी प्राचीन आचार्योके विचारते रहनेके कारण न टूटता हुआ चला आरहा है । यदि मीमांसक अब यह कहेंगे कि मोक्षमार्गके उपदेशमें प्राचीन पुरुषोंने क्या विचार किया है ? यतलाइये, तो हम जैन भी आप मीमांसकोंके प्रति कहेंगे कि आपके पुरिखाओंने सनाढ्य, गौड, माहेश्वर आदि सच्चे गोत्र, जातियोंके उपदेशमें क्या विचार किया है । इसपर आप यही कह सकते हैं कि प्रत्यक्ष, अनुमान और भागम प्रमाणों