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________________ દ્ર यस्वार्थचिन्तामणिः माने गये क्षणिक पदार्थ में भी अन्वयव्यतिरेक न होनेसे उस कार्यकारणभावका नहीं हो सकना एकसा है। भावार्थ-क्षणिक और नित्यमें कार्य न कर सकने की अपेक्षा से कोई अन्तर नहीं है। तत्र हेतावसत्येव कार्योत्पादेन्वयः कुतः । व्यतिरेकश्च संवृत्या तौ चेत् किं पारमार्थिकम् ॥ १२६ ॥ बौद्धों के माने गये क्षणिक एकांत में तो पूर्वक्षणवर्ती हेतुके न रहने पर ही कार्यका उत्पाद होना माना गया | मला ऐसी दशा में अन्वय कैसे बनेगा ! देतुके होनेपर कार्यके होनेको अन्य कहते हैं। किंतु बौद्धोंने हेतुके नाश होनेपर कार्य होना माना है यह तो अन्वय बनाने का ढंग नहीं है । और बौद्धों के यहां व्यतिरेक भी नहीं बन सकता है । क्योंकि कार्यकालमै असंख्य प्रभाव पडे हुए हैं । न जाने किसके अभाव होनेसे वर्तमानमें कार्य नहीं हो रहा है। यदि वास्तविक रूपसे कार्यकारणभाव न मानकर कल्पितव्यवहारसे उन अन्वयव्यतिरेकों को मानोगे तब तो आपके यहां वास्तविक पदार्थ क्या हो सकेगा ? बताओ । अर्थात् जिसके यहां वस्तुभूत कार्यकारणभाव नहीं माना गया है, उसके यहां कोई पदार्थ ठीक न बनेगा। स्याद्वाद सिद्धांत में सर्व पदार्थों को परिणामी माना है । मतः सभी अर्थ कार्य और कारण हैं, किंतु नैयायिक या वैशेषिकोंने भी सभी पदार्थों में से किन्हीको कारणतावच्छेदक धर्मोसे भवच्छिन्न स्वरूपसे और किसनोंको कार्यतावच्छेदक घमसे अरच्छिन्न होते हुए ही सत् पदार्थ माना है। किंतु बौद्धों के यहां वस्तुभूत पदार्थोंकी व्यवस्था नहीं बन पाती है । न हि क्षपणक्ष कांते सत्येव कारणे कार्यस्योत्पादः सम्भवति, कार्यकारणयोरेककालानुषंगात् । कारणस्यैकस्मिन् क्षणे जातस्य कार्यकालेऽपि सच्चे क्षणभंग भंग प्रसंगाश्च । सर्वथा तु विनष्टे कारणे कार्यस्योत्पादे कथमन्वयो नाम चिरतरविनष्टान्वयवत् । तत एव व्यतिरेकाभावः कारणाभावे कार्यस्याभावाभावात् । 1 एक क्षण पैदा होकर दूसरे क्षणमें पदार्थ नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार क्षणिकपनेके एकान्तमें कारण होनेपर ही कार्यकी उत्पत्ति होना यह अन्वय नहीं सम्भव है । क्योंकि यों तो पहिले पीछे होनेवाले कारण और कार्योंको एक ही कालमें रहनेका प्रसंग आता है और यदि पहिले एक समयमै उत्पन्न हो चुके कारणको उत्तरवर्ती कार्यके समय में भी विद्यमान मानोगे तो आपके क्षणिकपने के सिद्धान्तका मंग होजानेका प्रसङ्ग आजावेगा । यदि क्षणिकत्वकी रक्षा करोगे तब तो सभी प्रकार से कारण नष्ट हो जानेपर कार्यका उत्पाद माना गया । ऐसी अवस्था में महा अन्वय कैले मन सकेगा ? बताओ ? । जैसे कि बहुतकाल पहिले नष्ट हो चुके पदार्थ के साथ वर्तमान कार्यका अन्य नहीं बनता है, वैसे एक क्षण पूर्व में नष्ट होगये कारणके साथ भी अन्वयन बनेगा । दूसरे आपके यहां उस ही कारणसे व्यतिरेक भी नहीं बनता है। क्योंकि कारण के अभाव होनेपर कार्यका अमर होजाना नहीं होता है। प्रत्युत कारणके नष्ट हो जानेपर ही तुम्हारे यहां कार्य होना माना जाता 1
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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