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तत्त्वावैचिन्तामणिः
रुपयोंसे हम लक्षाधिपति क्यों नहीं बन जाते हैं ! सर्व ही पदार्थ कुछ न कुछ कार्य कर रहे हैं। प्रत्येक पदार्थ सर्वज्ञ द्वारा कमसे कम अपनी ज्ञप्ति तो करा ही रहा है । यावस्पदार्थोका यह कार्य तो केवलान्धयी है । अर्थपर्यायों और व्यञ्जन पर्यायों में तो उत्साद, व्यय, धौव्य, परिणाम होते रहते हैं।
परमाणुः कथमर्थक्रियाकारीति चेन्न, तस्यापि सशित्वात् । न हि परमाणोरंश एव नास्ति द्वितीयाचशाभावानिरन्वयत्त्ववचनात् । न च यथा परमाणुरेकप्रदेशमात्रस्तथात्मादिरपि शक्यो वक्तुं सकन्नानादेशव्यापित्वविरोधात् ।
___पुनः सौगात मोले कि देखो, परमाणु अंशोंसे रहित है। फिर भी वह घणुक बनाना आदि अर्थक्रियाओंको करता है। यदि आप जैन निरंश पदार्थको अर्थक्रियाका करनेवाला नहीं मानेगे तो वह परमाणु अर्थक्रियाको कैसे कर सकेगा ! यताओ। अब अन्यकार कहते हैं कि यह बौद्धोंका कहमा ठीक नहीं है। क्योंकि उस परमाणुको भी हम अंशोंसे सहित मानते हैं। एक परमाणुमे रुप रस आदि अनेक गुण हैं और काले, पीले, सट्टे, मीठे आदि अनेक पर्यायें हैं । लम्बाई, चौडाई, मोटाई भी है । अणुक, वर्गणा, स्कंध, आदि पननेके वस्तुभूत स्वभाव मी हैं। एक कालाणु मनन्त पदार्थोको वर्तन करानेकी नैमित्तिक शक्ति है। जैसे कि आतप (धूप ) में रखा हुआ कोई पदार्थ सूख रहा है, अन्य पदार्थ पक रहा है, तीसरा पदार्थ गीला होजाता है । चौया पदार्थ कठोर होजाता है । आदि अनेक कार्योंके करनेकी शाक्त आतपमें विद्यमान है। अतः परमाणुके अंश ही नहीं है, यह नहीं मानना चाहिये । हा! जैसे व्यणुक दो परमाणुओंसे बना है । ज्यणुक तीन परमाणुओंसे या एक आणुक और एक परमाणुसे बना है । उस प्रकार परमाणु अपनेसे छोटे अवयवों के द्वारा निष्पन्न नहीं होता है । तीन लोकमे परमाणुसे छोटा टुकड़ा न हुआ, न है और न होगा। अतः पुद्गल परमाणुको परम अवयव द्रव्य माना है। एक परमाणुको बनाने वाले उससे छोटे अन्य दूसरे तीसरे आदि अंश नहीं हैं। इस कारण जैन सिद्धांत परमाणुओंको अवयवोंसे रहित कह दिया है। किंतु परमाणुमे स्वमाव गुण और पर्यायोंकी अपेक्षासे तो अनेक अंश विद्यमान है । अखण्ड व्यापक आकाशके उस परमाणुके बराबर अंशको प्रदेश कहते है अर्थात् परमाणु आकाशके एक प्रदेशको घेरता है । आकाशके एक प्रदेशमै अवगाइनशक्तिके मोगसे अनेक परमाणु समा जाते हैं । किंतु एक परमाणु आधे प्रदेशपर नहीं बैठ सकता है । पाठः आकासके फेवरू एक प्रदेशके बराबर जैसे परमाणु हैं, वैसे ही आमा, धर्मद्रव्य, सक्ष, आदि पदायों को भी केवल एक प्रदेशमें ही रहने वाले नहीं कह सकते हैं। क्योंकि उनको एक समय अनेक देशों में व्यापकरूपसे रहनेका विशेष हो आवेगा, आत्मा, आकाश आदि अस्खण्डित अनेकदेशी पदार्थ अनेक प्रदेशों में व्यापक होकर रहते हुए देखे जाते हैं । विशेष यहां यह है कि परमाणुका आकार शक्ति की अपोक्षासे छह खण्ड रखते हुए छह पैल बरफीके समान है। पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर