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________________ तत्वार्थचिन्तामणिः मोक्ष अवस्या कोई बेहोशी, या मूर्छित या प्रदीपनिर्वाण, सारिखी नहीं है। परंतु सदा चैतन्यमय सुल, ज्ञान, अनुभाव, वस्तुत्व, द्रवण आदि परिणतियों स्वरूप हैं। विषयसुखादेरकवेति चेत् , कुतः स तथा ? तत्कारणकर्मकर्तृवाभावादिति चेत्, तर्हि संसारी विषयसुखादिकारणकर्मविशेषस्य कर्तृत्वादिषयसुखादेः कर्ता स एव घानुभविता किन्न भवेत् । यदि सांख्य यो कहें कि मुक्तजीव विषयोंसे उत्पन्न हुए सुख और क्रोध, राग, शरीर, इंद्रिय, शन्द, रस आविफोंका अका ही है। इस पर तो हम जैन पूंछते है कि आपने कैसे जाना कि वह मुक्त जीव उस प्रकार शरीर, सुख आदिकका कर्ता नहीं है ! बताओ। ___ यदि आप सांख्य यों कहे कि मुक्तजीवोंमें उन शरीर, शब्द, सुख, दुःख आदिको पनानेके कारण पुण्य-पापोका फापन नहीं है, अतः शरीर भादि या सुख आदिको नहीं बना पाता है। कारणके विना कार्य नहीं हो सकता है। पुण्य, पाप के बिना अकेले मासे मी शरीर आदि नहीं बनते हैं । ऐसा कहने पर तो आपके कथनसे ही यह बात निकल पडती है कि संसारी जीवको शरीर, घट, विषयसुख, क्रोध आदिके कारण माने गये विशिष्ट पुण्यपापोंका कर्तापन है जिस कारण संसारी जीव विषयसुल आदिका करनेवाका कर्ता है, तब तो वही उनका अनुमद करनेवाला भोक्ता मी क्यों नहीं होगा ! अर्थात् वही आत्मा भोक्ता भी है, कर्तृत्व और भोक्तृतका अधिकरण समान है। संसार्यवस्थायामात्मा विषयसुखादितत्कारणकर्मणां न कर्ता चेतनत्वान्मुक्तावस्यावदित्येदपि न सुन्दरम् , स्वेष्टविपासकारित्वात् , कथम् ? संसार्यवस्थायामात्मा न सुखादेभॊक्ता चेतनत्वान्मुक्तावस्थावदिति खेष्टस्यात्मनो भोक्तृत्वस्य विघातात् । सांख्य कहते हैं कि संसारमें प्रकृतिके साथ संसरण करनेवाली दशामें भी आत्मा विषय, सुख, दुःख आदिक और उनके कारण पुण्य पाप कमाका करनेवाला नहीं है । क्योंकि आस्मा सका द्रा, चेतन है जैसे कि मुक्त अवस्थामै विषयसुख, पुण्य आदिकका कर्ता नहीं है। इस प्रकार सांख्योंका यह कहना भी सुंदर नहीं है क्योंकि अपने इष्टसिद्धांतका ही विषात करनेवाला है। कैसे है ! सो सुनो ! इम भी कटाक्षरूप अनुमान प्रमाण देते हैं कि, संसरण करनेकी दशामे आत्मा सुख, दुःख, शरीर आदिका मोगनेवाला नहीं है क्योंकि वह चेतन है । जैसे कि मोक्ष भवस्थामें विषयसुख आद्रिका नहीं भोगनेवाला आत्मा आपने माना है। इस प्रकार माप सांख्योंके स्वयं इध किये गये भोत्तापनका भी विषात हुआ जाता है। पक्ष या पतिपक्षको पुष्ट करनेवाले अनुमान बनाये आसफले हैं।
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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