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________________ तत्त्वार्थचिन्तामणिः १५७ यत्र व्यक्तसंस्तत्रात्मा संवेद्यते नान्यत्रेत्यप्यनेनापास्तम् | निरंशस्य कश्चिदेव व्यक्तसंसर्गस्येतरस्य वा सहृदयोगात् । जहां आत्मामें अव्यक्त मानी गयी प्रकृतिके विवर्तस्वरूप हो रहे शरीर, इन्द्रिय, मन, पुण्य और श्वास आदि व्यक्त पदार्थों का सम्बन्ध हो रहा है वहां आत्माका संवेदन हो जाता है किन्तु जहां शरीर आदि व्यक्तपदार्थों का संसर्ग नहीं है वहां अन्य स्थानों में आत्माका ज्ञान नहीं होता है । प्रथकार समझाते हैं कि इस प्रकार किसीका कहना भी इस पूर्वोक्त कथनसे खण्डित कर दिया गया है क्योंकि जब आपके मत में आत्मा अंशोंसे रहित माना है तो आमाके खण्ड खण्ड देश दी नहीं बन सकते हैं। ऐसी दशामें कहीं शरीरके निकटवाली उसी आत्मामें शरीर के साथ ही आत्माका संसर्ग और कहीं कहीं पर्वत आदिके पास उसी आत्मामें ही व्यक्तशरीरका नहीं संसर्ग यो एक समयमै उक्त दोनों विरुद्धस्वभाव बन नहीं सकते हैं। अंशोंसे रीते हो रहे पदार्थ के युगपद् कहीं किसीका सम्बंध अथवा क्वचित् असम्बंध हो जानेका योग नहीं है । सकृदेकस्य परमाणोः परमाण्वन्तरेण संसर्ग क्वचिदन्यत्र चासंसर्ग प्रतिपद्यत इति चेत् न, तस्यापि कचिदेशे सतो देशान्तरे च तदसिद्धेः । कापिल कहते हैं कि देखो ! अंशरहित मी एक परमाणुका दूसरे परमाणुसे संसर्ग और उसी समय किसी दूसरे देशमें अन्य परमाणुओंका असंसर्ग इस प्रकारके दो विरुद्धस्वभाव परमाणु जाने जा रहे हैं । यदि एक परमाणु सर्वागरूपसे दूसरे परमाणुसे चिपक जाता तो परमाणुके बराबर ही धणुक हो जाता, यहांतक कि मेरु और सरसों दोनों ही एक बराबर हो जाते, अतः परमाणुका दूसरे परमाणुसे एकदेशमै संसर्ग और दूसरे देशमै असंसर्ग अवश्य मानना पड़ेगा । जैसे निरंश - एक परमाणु संसर्ग और असंसर्ग दोनों स्वभावोंको एकसमयमें धारण करलेता है, वैसे ही निरंश आमा मी व्यक्त संसर्ग और असंसर्ग इन दो स्वभावको धारण कर लेवेगा । आचार्य कहते हैं कि यह कापिलोंका कहना ठीक नहीं है क्योंकि वास्तवमे विचारा जाये तो परमाणु भी निरंश नहीं है । बरफीके समान छह पहलोंको धारण करनेवाले परमाणुके शक्तिकी अपेक्षासे छह अंश हैं। प्रत्यक्ष बरफीकी चकती आठ कौने दीखते हैं किंतु वह स्थूल है। कोनोंसे दूसरी बरफीके कोने भले ही मिलजा किंतु अन्य बरफी की पूरी भींत नहीं भिंड सकती है। कोनोंको दृष्टांत न समझना क्योंकि परमाणु से छोटा कोई अंश नहीं है। किंतु पैलों को परमाणुके अंशोंका दान्त मान लेना । रफी की चौरस मीर्ते छह हैं वे ही उसके अंश हैं। यदि बरफीके सभी ओर अन्य वरफियां रख दी जावे तो बरफीकी एक एक ओर की भीतों को छूती हुयीं छह नरफियां संसर्ग करेंगी, इसी प्रकार अत्यंत छोटे परमाणुके चारों दिशा और ऊपर, नीचे, इस प्रकार छह परमाणुएं भिन्न अंशों में सम्बन्धित हो जायेंगे। तभी मेह और सरसोंकी समानताका दोषसंग मी निवृत्त हो सकेगा ।
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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