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________________ तत्त्वार्य चिन्तामणिः २८५ उस कारण हमारे यहाँ सम्पूर्ण मिथ्याकल्पनाओंसे अतिक्रांत होरहा सत्त्व सिद्ध है। आप बौद्ध पहिली दो कल्पनाओंसे रहित ज्ञानतत्वको सिद्ध करते हो । इस प्रकार आप सिद्धका ही साधन कर रहे हो । यह तुम्हारे ऊपर सिद्धसाधन दोष हुआ। कोरी कल्पनाओंसे जाने जारहे. धर्म अथवा वे केवल कल्पनाएं वास्तविक तत्त्व नहीं हो सकते हैं क्योंकि अतिप्रसंग हो जावेगा। यानी मूछोंमें लगी लौनीवाले पुरुषकी गदत या छोकरोंके रनमें राजा हो जानेकी कल्पना मी वस्तुको स्पर्श करनेवाली हो जावेगी । उस कारण आत्मा, ज्ञान, सुख आदि अंतरण तत्त्व या घट, पट, पाषाण आदि सम्पूर्ण बहिरंग पदार्थ उन वो कल्पना से सर्वाङ्गरहित हैं। यह पात युक्तियोंसे सहित ही है। तृतीयपक्षे तु प्रतीतिविरोधः कथम् यदि तीसरा पक्ष लोगे यानी वस्तु के स्वभावोंको कल्पना मानोगे तब तो ऐसी कल्पनाओंसे रहित ज्ञानको इष्ट करनेपर तुमको लोकपसिद्ध प्रतीतियोंसे विरोध होगा । यह केस ! सो सुनिये। परोपगतसंवित्तिरनंशा नावभासते । ब्रह्मवत्तेन तन्मात्रं न प्रतिष्ठामियति नः ॥ १७ ॥ जैसे ब्रह्माद्वैतवादियोंका माना हुआ आधेयता, आधारता, कार्यता, कारणता और ग्राह्यता, प्राइकता बादि अंशोंसे रहित एक परब्रह्म प्रतिभासित नहीं होता है । उसीके सदृश अन्य बौद्धोंके द्वारा स्वीकार किया गया संवेद्य संवेदक और इन स्वभावरूप अंशोंसे रहित हो रहा केवल शुद्ध ज्ञान भी नहीं प्रतिमासित होता है । इस कारण कोरा शुद्ध ज्ञानाद्वैत तत्त्व भी हमारे सन्मुख प्रतिष्ठाको प्राप्त नहीं कर सकता है। वस्तुनः स्वभावाः कल्पनास्ताभिरशेषाभिः सुनिश्चितासम्भवद्भाधामी रहित संविन्मात्र तत्वमिति तु न व्यवतिष्ठते तस्थानंशस्य परोपवर्णितस्य ब्रह्मवदप्रतिभासनात् । इस बार्तिककी टीका यों है कि, तीसरे पक्षके अनुसार यदि वस्तुके स्वभावोंको करूपमा मानोगे तो सम्पूर्ण बाधक प्रमाणोंके नहीं सम्भव होनेका अच्छी तरहसे निश्चय कर लिया है जिनका ऐसी उन स्वभावरूप सम्पूर्ण कल्पनाओंसे रहित केवल संवेदन ही तत्व तो इस तरह व्यवस्थित नहीं हो पाता है । क्योंकि बौद्धोंके द्वारा माना गया स्वभाव और विशेषणरूप अंशोंसे रहित उस संवेदनका ब्रह्माद्वितके समान प्रतिमास नहीं होता है और वस्तुभूत कल्पनाये निवाध्य होकर पदामि दीख रही हैं। नानाकरमेकं प्रतिभासनमपि विरोधादसदेवेति चेत्
SR No.090495
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1949
Total Pages642
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size19 MB
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