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तत्वार्थचिन्तामणिः
श्रावणत्वादिवसाधारणत्वादनैकान्तिकोऽयं हेतुरिति चेन्न असाधारणत्वस्यानैकान्तिकत्वेन व्याप्त्यसिद्धेः ।
नैयायिक लोग अनेकान्तिक हवामासको तीन प्रकारका मानते हैं, साधारण, असाधारण और अनुपसंहारी । सपक्ष और विपक्षमें रहनेवाले हेतुको साधारण कहते हैं, जैसे कि पर्वत अमिवाला है। प्रमेय होनेसे, इस अनुमानमें प्रमेयत्व हेतु रसोई घर और तालाप रह जानेसे साधारण अनैकाकान्तिक हेत्वाभास है । और जो हेतु सपक्ष, विपक्ष, दोनों में नहीं रहता है उसको असाधारण कहते हैं । जैसे कि शब्द अनित्य है क्योंकि कर्णेन्द्रियसे ग्राह्य है, कानोंसे जाना गयापन हेतु तो घट आदि सपक्ष और आत्मा आकाश आदि विपक्षमें नहीं रहता है। अतः असाधारण है और केवलान्वयी पक्षवाले हेतुको अनुपसंहारी कहते हैं, जैसे कि 'सर्व पदार्थ जानने योग्य हैं प्रमेय होनेसे यहां सर्व पदार्थोको पक्ष कर लिया है, अतः अन्वयदृष्टान्त और व्यतिरेकदृष्टान्त नहीं मिलते हैं।
आचार्यके माने गये मोक्षमार्गलहेतुको प्राचीन नैयायिकके मतानुसार बौद्ध असाधारण हेत्वाभास बता रहा है। जैसे कि श्रावणल हेतु अनित्य माने गये घट, पट, आदि सपक्षों में नहीं रहता, है तथा नित्य हो रहे आकाश, आत्मा, आदि विपक्षोमे भी नहीं वर्तता है इस कारण असाधारण है । उसी प्रकार यह मोक्षमार्गत्व हेतु भी पक्षके अतिरिक्त सपक्ष और विपक्षम न रहनेसे असाधारण हेवाभास है | ग्रंथकार कहते हैं कि यह नैयायिकोंका विचार ठीक नहीं है । क्योंकि नो जो असाधारण होता है । वह वह अनैकान्तिक हेत्वाभास है ऐसी व्याप्ति सिद्ध नहीं है ।तभी तो नव्यनैयायिकोंने असाधारण हेत्वाभासका प्रत्याख्यान कर दिया है । और जैन भी असाधारण नामका हेस्वाभास नहीं मानते हैं।
सपक्षविपक्षयोहि हेतुरसत्त्वेन निश्चितोऽसाधारणः संशयितो वा ? निश्चतश्चेत् कथमनैकान्तिकः १ पक्षे साध्यासम्भवे अनुपपद्यमानतयास्तित्वेन निश्चितत्वात् संशयहेतुवाभावात् । न च सपक्षविपक्षयोरसत्त्वेन निश्चिते पक्षे साध्याविनाभारित्वेन निश्चेतुमशक्या सर्वानित्यत्वादौ सत्वादेरहेतुत्वप्रसंगात् , न हि सत्वादिविपक्ष एवासवेन निश्चिता सपक्षेऽपि तदसत्त्वनिश्चयात् । ____ हम जैन आप वृद्ध नैयायिकोंकी पक्षवाले नौद्धोंसे पूछते हैं कि आप सपक्ष विपक्षमें न रहने वाले हेतुको असाधारण कहते हैं तो जैसे आपने साधारण व्यभिचारके दो भेद किये हैं, विपक्षमें हेतुके निश्चितरूपसे रहनेपर निश्चित व्यभिचार होता है और विपक्षमे हेतुके रहनेका संशय होनेपर संदिग्ध व्यभिचार होता है । इसी प्रकार क्या सपक्ष और विपक्षम हेतुके निश्चयरूपसे न रहनेको असाधारण कहते हैं ! या संशयरूपसे न रहनेको असाधारण मानते हो ! बताओ यदि आप पहिला