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________________ ३६ तत्वार्थसार मान-माया - लोभमें से किसी एक प्रकृतिका उदय आनेसे जिसका सम्यक्त्व नष्ट हो गया है वह सासादन गुणस्थानवर्ती जीव कहा गया है। 3 भावार्थ - मिथ्यात्वादि तीन तथा अनन्तानुबन्धी सम्बन्धी चार इन सात प्रकृतियों का उपशम कर यह जीव उपशम सम्यग्दृष्टि बनता है। इस उपशम सम्यग्दर्शनका काल ध है। पूर्ण होने के जब उपशम सम्यक्त्वका काल कम-से-कम एक समय और अधिकसे अधिक छह आवली प्रमाण बाकी रह जाता है तब अनन्तानुबन्धी क्रोध- मान-मायालोभसे किसी एकका उदय आ जानेसे जो सम्यक्त्वरूपी रत्नमय पर्वतकी शिखर से नीचे गिर जाता है परन्तु अभी मिथ्यात्वरूपी भूमिमें नहीं पहुँच सका है वह सासन या सासादन गुणस्थानवर्ती कहा जाता है। यह गुणस्थान चतुर्थ गुणस्थानसे नीचे गिरने पर ही होता है ।। १९ ।। मिश्र गुणस्थानका स्वरूप सम्यग्मिथ्यात्वसंज्ञायाः प्रकृतेरुदयाद्भवेत् । मिश्रभावतया सम्यग्मिध्यादृष्टिः शरीरवान् ||२०|| अर्थ - सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतिके उदयसे मिश्ररूप परिणाम होनेके कारण जीव सम्यग्मिथ्यादृष्टि अथवा मिश्रगुणस्थानवर्ती होता है । भावार्थ — दर्शनमोहनीयके तीन भेदोंमें एक सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति नामका भेद है । इस प्रकृतिके उदयसे जीवके ऐसे भाव होते हैं जिन्हें न मिथ्यात्वरूप कहा जा सकता है और न सम्यक्त्वरूप | जिस प्रकार दही और गुड़के मिलनेपर ऐसा स्वाद बनता है कि जिसे न खट्टा ही कहा जा सकता है और न मीठा ही। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिके उदय में ऐसा भाव होता है कि जिसे न सम्यक्त्व ही कहा जा सकता है और न मिध्यात्व हो । किन्तु मिश्ररूप भाव होता है ऐसे मिश्रभावको धारण करनेवाले जीवको मिश्रगुणस्थानवर्ती कहते हैं । इस गुणस्थानमें किसी आयुका बन्ध नहीं होता तथा मरण और मारणान्तिक समुद्धात भी नहीं होता । मरणका अवसर आनेपर यह जीव या तो चतुर्थ गुणस्थान में पहुँचकर मरता है या प्रथम गुणस्थानमें आ कर मरता है। यह जीव दूसरे गुणस्थानमें नहीं आता । चतुर्थ गुणस्थानवर्ती जीव मिश्रप्रकृतिका उदय आनेपर इस तृत्तीय गुणस्थानमें आ जाता है । कोई सादि मिध्यादृष्टि जीव भी मिश्र प्रकृतिका उदय आनेपर तृतीय गुणस्थान में पहुँचता है ।। २० ।।
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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