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________________ अष्टमाधिकार २०३ संख्या - जघन्यकी अपेक्षा एक समय में एक और उत्कृष्टको अपेक्षा एक्सो आठ जीव सिद्ध होते हैं । अल्पबहुत्व - क्षेत्र आदिके भेदसे विशेषताको प्राप्त हुए सिद्ध जीवोंमें जो संख्या की अपेक्षा होनाधिकता होती है उसे अल्पबहुत्व कहते हैं । प्रत्युत्पन्न नयकी अपेक्षा सब जोव सिद्धिक्षेत्र में ही सिद्ध होते हैं इसलिये उनमें किसी प्रकारका अल्पबहुत्व नहीं है । परन्तु जब भूतपूर्व नयकी अपेक्षा चर्चा होती है तब अल्पबहुत्व सिद्ध होता है । जैसे क्षेत्रसिद्ध जन्म और संहरणकी अपेक्षा दो प्रकारके हैं । उनमें संहरणसिद्ध अल्प हैं और जन्मसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं । संहरण भी स्वकृत और परकृतकी अपेक्षा दो प्रकारका होता है । देव या विद्याधरोंके द्वारा किया हुआ संहरण परकृत संहरण है और चारण ऋद्धिके धारक कोई मुनि स्वयं ही जब किसी भोगभूमि आदिके क्षेत्र में जाकर विराजमान होते हैं तब स्वकृतसंहरण कहलाता है | क्षेत्रोंके कर्मभूमि, अकर्मभूमि, समुद्र, द्वीप, ऊर्ध्व अधस्तात् और नियंकुके भेदसे अनेक भेद हैं। इनमें ऊर्ध्वलोक - आकाशसे सिद्ध होनेवाले सबसे कम हैं, अधोलोक --- गुफा आदि निम्नप्रदेशोंसे सिद्ध होनेवाले उनकी अपेक्षा संख्यातगुणे हैं तिर्यक्लोक - समान धरातलपर स्थित द्वीप समुद्रोंसे सिद्ध होनेवाले उनकी अपेक्षा गुने हैं । समुद्रसिद्ध सबसे भय हैं, द्वीपसिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं । यह सामान्यको अपेक्षा चर्चा है। विशेषताकी अपेक्षा लवणसमुद्रसे सिद्ध होनेवाले सबसे थोड़े हैं, कालोदधि से सिद्ध होनेवाले उनसे संख्यातगुणे हैं, जम्बूद्वीपसे सिद्ध होनेवाले उनसे संख्यातगुणे हैं, धातकीखण्डसे सिद्ध होनेवाले उनसे संख्यातगुणे हैं, और पुष्करार्थसे सिद्ध होनेवाले उनसे भी संख्यातगुणे है | अकर्मभूमि से सिद्ध होनेवाले अल्प हैं और कर्मभूमिसे सिद्ध होनेवाले उनके संख्यातगुणे हैं । कालके उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी और अनुत्सर्पिण्य सर्पिणीकी अपेक्षा तीन भेद हैं। इनमें उत्सर्पिणीसिद्ध सबसे थोड़े हैं, अवसर्पिणी सिद्ध उनकी अपेक्षा विशेष अधिक हैं और अनुत्सर्पिण्यनवसपणीसिद्ध उनसे संख्यातगुण हैं । यह भूतपूर्व प्रज्ञापन नयकी अपेक्षा चर्चा है । प्रत्युत्पन्न नयकी अपेक्षा एक समय में ही सिद्ध होते हैं इसलिये उनमें अल्पबहुत्का विचार नहीं होता है । गति अनुयोगकी अपेक्षा प्रत्युत्पन्न नयको विवक्षासे सब सिद्धिगतिमें ही सिद्ध होते हैं इसलिये अल्पबहुत नहीं है । तथा भूतपूर्वनयकी अपेक्षा अनन्तर गतिकी अपेक्षा सब मनुष्यगति में सिद्ध होते हैं इसलिये उनमें भी अल्पबहुत्व नहीं है किन्तु एकान्तर गतिकी अपेक्षा अल्पबहुत्व होता है । जैसे तियंग अनन्तर गतिसे सिद्ध होनेवाले सबसे थोड़े हैं, मनुष्य अनन्तर गति से सिद्ध होनेवाले उनसे संख्यातगुणे हैं, नरक अनन्तरगतिसे सिद्ध होनेवाले उनसे असंख्यातगुणे हैं और देव अनन्तर गति से सिद्ध होनेवाले उनसे असंख्यातगुणे हैं । लिङ्गकी अपेक्षा चर्चा
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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