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________________ अष्टम अधिकार ( मोक्षतका वर्णन ) मङ्गलाचरण अनन्त केवल ज्योतिःप्रकाशितजगत्त्रयान् प्रणिपत्य जिनान्मूर्ध्ना मोक्षतचं प्ररूप्यते ॥ १ ॥ अर्थ - अनन्त केवलज्ञानरूपी ज्योतिके द्वारा तीनों जगत्को प्रकाशित करनेवाले अरहन्तोंको शिरसे नमस्कारकर मोक्षतत्त्वका निरूपण किया जाता है ॥ १ ॥ मोक्षका लक्षण अभावादन्धहेतूनां बद्धनिर्जरया तथा । कृत्स्नकर्मप्रमोक्षो हि मोक्ष इत्यभिधीयते ॥ २ ॥ अर्थ - बन्धके कारणोंका अभाव तथा पूर्वबद्धकर्मोकी निर्जरासे समस्त कमका सदा के लिये छूट जाना मोक्ष कहलाता है ॥ २ ॥ मोक्ष किस प्रकार होता है ? बध्नाति कर्म सद्वेद्यं सयोगः केवली विदुः । योगाभावादयोगस्य कर्मबन्धो न विद्यते ॥ ३ ॥ निजीर्ण निःशेष पूर्व सश्चितकर्मणः । ततो आत्मनः स्वात्मसंप्राप्तिर्मोक्षः सद्योऽवसीयते ॥ ४ ॥ अर्थ - ऐसा जानना चाहिये कि सयोगकेवली सातावेदनीयकर्मका बन्ध करते हैं परन्तु योगका अभाव हो जानेसे आगे आयोग केबलीके कर्मबन्ध नहीं होता है । तदनन्तर जिसके पूर्व संचित समस्त कर्मोकी निर्जरा हो चुकी है ऐसे जीवके स्वात्मोपलब्धिरूप मोक्ष शीघ्र हो जाता है । ३-४ ॥ मोक्षमें किन किन भावोंका अभाव तथा सद्भाव रहता है ? तथौपशमिकादीनां भव्यत्वस्य च संक्षयात् । मोक्षः सिद्धस्वसम्यक्त्वज्ञानदर्शनशालिनः ॥ ५ ॥
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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