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________________ पचमाधिकार स्वर्थे सप्त तथैका च गन्धेऽष्टौ रसवर्णयोः । अर्थ -- मोहनीयको दो और नामकर्मकी छब्बीस प्रकृतियोंको छोड़कर समस्त कर्मो की शेष प्रकृतियां बन्धके योग्य मानी गई हैं। मोहनीयकी सम्यङ् मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति तथा नामकर्मको बन्धन और संघात सम्बन्धी दश एवं स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण सम्बन्धी सोलह इस तरह छब्बीस प्रकृतियाँ अबन्धप्रकृतियाँ कही गई हैं । भावार्थ- दर्शनीय मोहनीयकर्मके तीन भेदोंमें मात्र मिथ्यात्वका बन्ध होता है । पीछे सम्यग्दर्शन होनेपर उसके प्रभावसे उसके तीन खण्ड हो जाते हैं१ मिध्यात्व २ सम्यग्मिथ्यात्व और ३ सम्यक्त्व प्रकृति । नामकर्ममें पांच बन्धन और पाँच संचात इन दश प्रकृतियों का पांच शरीरमें हो अन्तभाव हो जाता है। और स्पर्शादिककी बीस प्रकृतियोंको बन्ध तथा उदयके प्रकरणमें भेदरूप न लेकर अभेदरूप लिया जाता है इसलिये सोलह प्रकृतियाँ इनकी कम हो जाती हैं, इस तरह सब मिलाकर नामकर्मकी छन्नीस प्रकृतियाँ अबन्धरूप हैं। एक्सी अड़तालीस प्रकृतियोंमें अभेद विवक्षा में सामान्यरूपसे एक सौ बीस प्रकृतियां बन्धके योग्य और अट्ठाईस प्रकृतियाँ अबन्धके योग्य मानी गई हैं। उदयकी अपेक्षा एक सौ बाईस प्रकृतियाँ उदयके योग्य और लध्बोस प्रकृतियाँ उदयके अयोग्य मानी गई हैं। सत्त्वका वर्णन आचार्योंने भेदविवक्षासे ही किया है । इसलिये सभी प्रकृतियाँ सत्त्वके योग्य हैं असत्त्वके योग्य कोई भी प्रकृति नहीं है ।। ४१-४२ ॥ कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध वेद्यान्तराययोर्ज्ञानदृगावरणयोस्तथा ||४३|| कोटी कोटयः स्मृतास्त्रित्सागराणां परा स्थितिः । मोहस्य सप्ततिस्ताः स्युविंशतिर्नामगोत्रयोः ॥ ४४ ॥ आयुषस्तु त्रयस्त्रिंशत्सागराणां परा स्थितिः । १५५ अर्थ -- वेदनीय, अन्तराय, ज्ञानावरण और दर्शनावरणकी उत्कृष्ट स्थिति तीस कोड़ा - कोड़ी सागर, मोहनीयकी सत्तर कोड़ा कोड़ी सागर, नाम और गोत्रकी बीस कोड़ा कोड़ी सागर तथा आयुकी तेतीस सागर उत्कृष्ट स्थिति है ।। ४३-४४ ॥ कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध मुहूर्ता द्वादश ज्ञेया वेद्येऽष्टौ नामगोत्र योः ॥ ४५ ॥ स्थितिरन्तर्मुहूर्तस्तु जघन्या शेषकर्मसु ।
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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