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________________ १४८ तरवार्थसार प्रत्याख्यानावरण क्रोध-मान-माया-लोभ और संज्वलन क्रोध-मान-माया-लोभके भेदसे सोलह भेद हैं और नोकषायके हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्री, पुरुषभेद र नसकी अपेक्षा नो भेद है। सब मिलाकर मोहनीयकर्मके अट्ठाईस भेद होते हैं। भावार्य-उक्त भेदोंके लक्षण इस प्रकार है मिथ्यात्वप्रकृति-जिसके उदयसे तत्त्वार्थका श्रद्धान नहीं हो पाता उसे मिथ्यात्वप्रकृति कहते हैं। सम्यक्स्वप्रकृति -- जिसके उदयसे सम्यग्दर्शनमें चल, मलिन और अगाढ़ नामक दोष लगते हैं उसे सम्यक्त्वप्रकृति कहते हैं। सम्पङिमध्यात्वप्रकृति-जिसके उदयसे सम्यवत्व और मिथ्यात्वरूप मिश्रित परिणाम हों उस सम्यङ्मिथ्यात्वप्रकृति कहते हैं । ___ अनन्तानुबन्धी क्रोध-मान-माया-लोभ-अनन्त संसारका कारण होनेसे मिथ्यात्वको अनन्त कहते हैं उस अनन्त-मिथ्यात्वसे जिसका सम्बन्ध हो उसे अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ कहते हैं । ___ अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ-जिसके उदयसे एकदेशचारित्र प्रकट न हो सके उसे अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ कहते हैं। प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ-जिसके उदयसे सकलचारित्र न हो सके उसे प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ कहते हैं। ___ संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ-एकदेशघाती होनेके कारण जो सम् अर्थात् संयमके साथ भी ज्वलित कार्यशील रहे उसे संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ कहते हैं । इसके उदयसे यथाख्यातचारित्र प्रकट नहीं हो पाता है । हास्य-जिसके उदयसे हँसी आवे उसे हास्य कहते हैं। रति...जिसके उदयसे स्त्री-पुत्र आदिमें रागरूप परिणाम हों उसे रति कहते हैं। अरति--जिसके उदयसे अनिष्ट पदार्थोंमें द्वेषरूप परिणाम हों उसे अरति कहते हैं। शोक-जिसके उदयसे सुपुत्र आदिका वियोग होनेपर दुःखरूप परिणाम होता है उसे शोक कहते हैं। भय · जिसके उदयसे भय उत्पन्न होता है उसे भय कहते हैं। जुगुप्सा-जिसके उदयसे घृणित पदार्थोंके देखने पर ग्लानिका भाव उत्पन्न हो उसे जुगुप्सा कहते हैं। ।
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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