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________________ चतुर्थाधिकार अतिक्रमो विरुद्धे च राज्ये सन्तीति पञ्च ते । अर्थ- स्तेनाहुतग्रहण - बोरके द्वारा चुराकर लाई हुई वस्तुओंको जानबूझकर ग्रहण करना, स्तेनप्रयोजन - स्वयं चोरी न करते हुए भी चोरके लिये चोरीकी प्रेरणा करना, प्रतिछत्व व्यवहार - असली वस्तुओंमें नकली वस्तुएँ मिलाकर बेचना, मानोन्मानोन वृद्धता - नापने तौलनेके वाट तथा गज वगैरहको कम बढ़ रखना और विरुद्धराज्यातिक्रम — राज्य में गड़बड़ी होनेपर मर्यादाका उलङ्घन करना अर्थात् सस्तो वस्तुओंको अधिक मूल्यपर बेंचना या अधिक मूल्यवाली वस्तुओंकी सस्ते भावसे खरीदना अथवा राजकीय आशाका उल्ल नकर विरोधी राजाके राज्यसे वस्तुओंका आयात-निर्यात करना ये पांच अचौर्याणुव्रत अतिचार हैं ।। ८७ ।। ब्रह्मचर्या के पाँच अतिचार अनङ्गक्रीडितं तीव्रोऽभिनिवेशो मनोभ्रुवः ||८८|| इत्वयोर्गमनं चैत्र संगृहीतागृहीतयोः । तथा परविवाहस्य करणं चेति पञ्च ते ॥८९॥ अर्थ —– अनङ्गक्रीडा -- कामसेवनके लिये निश्चित अङ्गोंके सिवाय अन्य असे अप्राकृतिक क्रीडा करना, कामतीवाभिनिवेश - काम सेवनकी तो लालसा रखना, संगृहीतेत्यरिकागमन- दूसरेके द्वारा ग्रहण की हुई कुलटा स्त्रियों के साथ संपर्क रखना और गृहोतेत्वरिकागमन - दूसरे के द्वारा ग्रहण न की हुई कुलटा स्त्रियोंसे संपर्क रखना, और परविवाहकरण - अपने आश्रित पुत्र-पुत्रियोंके सिवाय दूसरोंका विवाह करना ये पाँच ब्रह्मचर्याणुव्रतके अतिचार हैं ।। ८८-८९ ।। !!! परिग्रहपरिमाणाव्रतको अतिचार हिरण्यस्वर्णयोः क्षेत्र वास्तुनोर्धनधान्योः | दासीदासस्य कुप्यस्य मानाधिक्यानि पञ्च ते ॥९०॥ अर्थ- सोना-चांदी, खेत- मकान, धन-धान्य, दासी दास और कुप्य - वर्तन तथा वस्त्र के प्रमाणका उल्लंघन करना ये पाँच परिग्रहपरिमाणुव्रत के अतिचार हैं । भाषार्थ - सोना चाँदी आदिके परिमाणके उल्लंघन करनेका प्रकार ऐसा है - जैसा कि किसीने नियम लिया कि मैं दो आभूषण हायके और एक गलेके लिए रक्खूँगा । पीछे लोभको मात्रा में वृद्धि होने पर कम तौलसे बने हुए
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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