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________________ १८ तत्वार्थसार इस प्रसिद्ध श्लोकमै भी तत्त्वार्थसूत्रके कर्ताको मुद्धपिच्छत उपलक्षित उमास्वाभर मामसे प्रकट किया गया है। इन उपरितन उल्लेखोंसे तत्त्वार्थसूत्रके रचयिता उमास्वामी, उमास्वाति और गृह्यपिच्छाचार्य ये तीन नाम हमारे सामने आते हैं। यह बहुत ही प्रसिद्ध तथा जिनागम के पारगामी विद्वान थे । सत्त्वार्थसूत्रके टीकाकार समन्तभद्र , पूज्यपाद, अकलंक तथा विद्यानंद आदि मुनियोंने बड़े श्रद्धापूर्ण शब्दों में इनका उल्लेख किया है । पूज्यपादस्वामोने सर्वार्थसिद्धिके प्रारम्भमें जो उनका वर्णन किया है वह अत्यन्त मार्मिक है _ 'मुनिपरिषम्मध्ये सन्निधणं मूर्तमित्र मोकामार्गमवाग्विसर्ग वपुषा निरूपयन्तं युक्स्पा. गमकुशल परहितप्रतिपावनककार्यमार्यनिषेव्यं निर्गन्याचार्यवर्यम्' ___ जो मनिसभाके मध्य में विराजमान थे, जो बिना वचन बोले अपने शरीरसे ही मानो मूर्तिधारी मोक्षमार्गका निरूपण कर रहे थे, युक्ति और बागममें कुशल थे, परहितका निरूपण करना ही जिनका एक कार्य या तथा उत्तमोत्तम आर्यपुरुष जिनकी सेवा करते थे ऐसे दिगम्बराचार्य श्रीउमास्वामी महाराज थे । विद्यानन्दस्वामीने आपके साथ भगद्धिः ' इस प्रकार बादरमूचक शब्दोंका प्रयोग किया है । तत्त्वार्थ सूत्रके या अध्यायोंमें जीवादि सात तत्त्वोंका विशद वर्णन है अर्थात् पहलेके चार अध्यायों में जीवका, पांचवें अध्यायमें अजीवका, छठवें और सातवें अव्यायमें आसबका, आठवें अध्यायमें बन्धका, नौवें अध्यायमें संवर और निर्जराका लथा दशवें अध्यायमें मोक्षतत्त्वका वर्णन है । तत्त्वार्थसूत्रकी महिमामें प्रसिद्ध है वशाध्याये परिचिन्ने तत्त्वार्थे पठिते सति । फलं पादुपवासस्य भाषितं मुनिपुङ्गवः ।। दशाध्याय प्रमाण तत्त्वार्थस्त्रका पाठ और अनगम करनेपर मुनियों ने एक उपवासका फल बललाया है अर्थात् एक उपवाससे जितनी निर्जरा होती है उतनी निर्जरा अर्थ समझते हुए तत्वार्थसूचके एक बार पाठ करनेसे होती है । ___ समन्तभद्र, पूज्यपाद, अकलंक और विद्यानन्द जैसे बहुश्रुत आचार्योंने इसपर वृत्ति, पातिक और भाष्य लिखने में अपना गौरव समशा, इसोसे तत्वार्थसूत्रकी महिमा आंको जा सकती है। कुछ टीकाओंका संक्षिप्त परिचय समन्तभद्रस्वामीका गन्धहस्तिमहाभाष्य उपलब्ध नहीं है अतः उसके विषयमें कुछ नहीं कहा जा सकता है। परन्तु पुज्यपादस्वामीकी सर्वार्थसिद्धिवृत्ति, अकलंकस्वामीका राजवार्तिक, विद्यानन्दस्वामीका श्लोकवार्तिक, भास्करमन्दिकी सुखकोषास्य टीका और अतसागरकी तस्वार्थवृत्ति टीकाएं देखनेका अवसर प्राप्त हुआ है । पूज्यपादस्वामीको सर्वार्थसिद्धिवृत्ति पातालभाष्यकी पद्धतिपर सरल माषामें लिखित उच्चकोटिको वृत्ति
SR No.090494
Book TitleTattvarthsar
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorPannalal Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size5 MB
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