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________________ (८) चातुर्मास सम्पन्न हुए। फिर मुजफ्फरनगर और बड़ौत ये दो चातुर्मास स्वतंत्र किए । आ. धर्मसागरजी की समाधि के बाद मुनि वर्धमानसागरजी के संघ के साथ किशनगढ़ चातुर्मास किया। फिर क्रमशः सलूम्बर (१०८ विपुलसागरजी के साथ), लोहारिया (प्रा. अजितसागरजी के साथ) चातुर्मास हुआ। आचार्य अजितसागरजी महाराज की समाधि साबला ( डूगरपुर ) में हुई और प्राचार्यश्री के द्वारा घोषित आदेशानुसार वर्धमानसागजी महाराज को आचार्यपद से सुशोभित किया गया। अभी आप उक्त आचार्यश्री के संघ में ही बिराज रही हैं। पूज्य जिनमति माताजी पूज्य ज्ञानमतिजी के प्रबल निमित्त से आज श्रेष्ठ न्यायज्ञा व संस्कृतज्ञा के रूप में जानी जाती हैं । प्रमेयकमलमार्तण्ड [सानुवाद २०३६ पृष्ठ] तथा मरणकण्डिका जैसे महाकाय ग्रंथों का प्रथम बार अनुवाद आपने ही किया है और आज भव्य पाठकों के सामने इस सुखबोधा को भी आपने अतिसुखबोधा बना करके प्रस्तुत कर दिया। आपके कारण से इस शताब्दी का पूज्य साध्वी वर्ग नूनमेव गौरवान्वित रहेगा । अन्त में यह आशा करता हुआ कि सुखबोध टीका की यह भाषा टीका भव्य जनों द्वारा आहत होगी, पूज्य महाविदुषी जिनमति के चरणों में बहुबार त्रिधा "वंदामि" करता हुआ अपनी प्रस्तावना पूर्ण करता हूं। आपका सेवक! श्री जवाहरलाल मोतीलाल वकतावत साटड़िया बाजार, भीण्डर
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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