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तत्त्वभावना श्री पद्मनंनि मुनि अनित्यपंचाशत् में कहते हैं
तडिदिन चलमेतल पुत्रदारादिसर्व । किमिति तमिधाते विद्यते बुद्धिमभिः । स्थितिजननविनाशं नोष्णतेवामलस्य । व्यभिचरति कदाचित् सर्वभावेषु ननं ॥२६॥
भावार्थ-ये पुत्र स्त्री आदि सर्व पदार्थ बिजलीके चमत्कार के समान चंचल हैं। इनमें से किसीके नाश होनेपर बुद्धिमानोंको शोक क्यों करना चाहिए, अर्थात् शोक कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि निश्चयसे सर्व जगत के पदायोका यह स्वभाव है कि उनमें उत्पाद व्यय ध्रौव्य होता रहता है । जैसे अग्नि में उष्णता कभी नहीं जाती वैसे उत्पत्ति, नाश व स्थितपना कभी नहीं मिटता। हरएक पदार्थ मूलपने से स्थिर रहता है परन्तु अवस्थाओं की अपेक्षा नाश होता है और जन्मता है । पुरानी अवस्था मिटती व नई अवस्था पैदा होती है। जगत में सब अवस्शायें ही दिखलाई पड़ती हैं इनका अवश्य नाश होगा इसलिए वस्तुस्वभावमें शोक करना मूर्खता है । जो किसीका मरण हुआ है उसका अर्थ यह है कि उसका जन्म भी हुमा है तथा जिसमें मरण व जन्म हुआ है वह वस्तु स्थिर भी है। जैसे कोई मानव मरकर कुत्ता जन्मा । तब मानव जन्मका नाश हुआ, कुत्ते के जन्मका उत्पाद हुआ परन्तु वह जीव वही है, जो मानवमें था वही कुत्ते में है। ऐसा स्वभाव जानकर ज्ञानीको सदा समताभाव रखना चाहिए।