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________________ सस्वभावना मूल श्लोकानुसार मालिनी छन्द कैसा है कालं कौन है जन्म मेरा, किस विध वर्तुं मैं क्या सुहित अन्न मेरा। परलोके हित क्या, क्या ज़ अपमा पराया, ऐसे चिन्ते विन, भव उदधि निज जुमाया । उत्थानिका-आगे कहते हैं कि साघु मार्ग ही मुक्ति का कारण है शार्दूलविक्रीडित छन्द येषां काननमालयं शशधरो वीपस्तमश्छेचकः। श्यं भोरगुल नतीमा सिस्नरम् ॥ संतोषा मृतपानपुष्टवपुषो निध्य कर्माणि से। धन्या यांति निवासमस्तविपदं दीनदेरापं परैः॥२४॥ अन्वयार्थ -- येषां) जिन महात्माओं का (आलयं) घर (काननं) जंगल है, (तमश्छेदकः) अंधकार को नाशने वाला (दोपः) दीपक (शशधरः) चन्द्रमा है, (उत्तम भोजन) उत्तम भोजन (भैक्ष्यं) भिक्षा द्वारा हाथ में रक्खा हुआ भोजन लेना है, (माय्या) सोनेका पलंग (वसुमती) भूमि है, (तु) तथा (अम्बर) कपड़ा (दिश:) दिशाएँ हैं (ते) वे (संतोषामृतपानपुष्टवपुषः) संतोषरूपी अमृत के पानसे अपने शरीर को पुष्ट करने वाले (धन्याः) धन्य साधु (कर्माणि) कर्मों को (निषूय) धोकर (परैः दीन:) दूसरे दोन पुरुषों से (दुराप)न प्राप्त करने योग्य (अस्तविपदं) सर्व आपत्तियों से रहित निराकुल (निवास) मोक्षस्थान को (यांति) प्राप्त कर लेते हैं। भावार्थ-पहां आचार्य ने दिखलाया है कि निम्रन्थ लिंगधारी साधु महात्मा ही मोक्ष के अधिकारी हैं।
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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