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________________ तस्वमार भावार्थ हे बद्धिमानों! आत्मज्ञानरूपी पवित्र तीर्थ एक आश्चर्यकारी तीर्थ है, इसमें बराबर भले प्रकार स्नान करो। जो कर्ममल अन्तरङ्ग में है व जिसको अन्य कुरोडों तीर्थ धो नहीं सकते उस मेलको यह आत्मज्ञान रूपी तीर्थ धो देता है। मूल श्लोकानुसार मालिनी छन्द जिस मुनिके मममें लोक व्यवहार सारा शिव पथ हारा घोर आरम्म कारा। महिं होत सुसाधु आत्म तत्वे बिहारी । कर क्षय मल सर्व ब्रह्म पद लेत मारी॥२०॥ उस्थानिका-आगे कहते हैं कि कामधिकार बड़ा प्रबल है, इसने सर्व जगत को वश कर लिया है। नो वा म विचक्षणा न मुनयो न ज्ञानिनो नाधमाः। नो शूरा न विभोरवो न पशवो न स्वागणी मांडजाः । स्यज्यते समर्वासनेष सकला लोफनयध्यापिना। बुरिंग मनोमवेन नयता हत्वांगिनो वश्यता ।।२१।। अन्वयार्ष-- (समवतिना इव)समवर्ती जो यमराज या मरण उसके समान (लोकत्रयव्यापिना) तीन लोक व्यापी (दुरिण) महान कठिनता से दूर करने योग्य तथा (अंगिनः)शरीरधारियों को (हत्वा) मार करके (वश्यता न यता) अपने वश करने वाले (मनोभवेन) कामदेव के द्वारा (नो वृद्धाः) न तो वृद्ध (न विचक्षणाः) न चतुर (न मुनयः) न साधुजन (न शानिनः) न ज्ञानी लोग(न अधमाः) न नीच पुरुष (नो शूराः) न वीर मानव (न विभीरवः)न डरपोक जन(न पशवः)न पशुगण (न स्वगिण:)
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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