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________________ ( viii) रूप में किया है। मोक्ष प्राप्ति का सरल उपाय ध्यान का विशेष वर्णन इसमें लिखा है। "निज को निज में जान, पर को पर में मान । तेरा आतम है परमातम, और सभी पर मान ।" कर्मों की शिक्षा का गान मायाधि, एकाकीपन, निसंगता, आत्मा के सन्मुख होना, आत्मा में रमणता या ब्रह्मा चर्य, स्व में रमण या स्वाध्याय, साम्पभाव, सिद्धि, स्वात्मोपलब्धि, आत्मलीनता, चित्त को स्थिरता, सामायिक, ध्यान इत्यादि सभी पर्यायवाची शब्द हैं। महावती के लिए तो इनको विशेष प्रमुखता है हो किंतु श्रावकों का भो २ या ३ बार अवश्य करने को कहा है ताकि आगे जाकर सरलता से आत्म कल्याण कर सकें । कर्मों की निर्जरा होकर मोक्ष प्राप्ति का ये ही उपाय है। सामायिक में प्राणी मात्र से दोषों को क्षमा मांगकर, क्षमा करके, अचल आसन, समय की पाबन्दी, राग द्वेष माह का त्याग करके संकल्प-विकल्प को छोड़कर शरीर को पड़ोसो समझ कर अन्दर जो चैतन्य स्वरूप ज्ञाता दृष्टा परमात्मा विराजमान है अर्थात् शरीररूपी देवालय में जो मेरा मात्मा भगवान स्वरूप है उसको सबसे एकाकी अनुभव करना है वो देखने दिखाने की चोज नहीं, अतीन्द्रिय है, सिर्फ अनुभवगम्य है और अनुभव भी पर से विरक्त हुवे बिना नहीं होगा। कुछ भी काम करते हुए, प्रत्येक क्रिया को हमारी कोई अन्दर अनुभव कर रहा है वो ही मेरा परमातम स्वरूप आत्मा है। सेठ के यहां लाखों करोड़ों का व्यापार करता हुआ मुनोम उस धन की लाभ-हानि से विरक्त है । लड़की की सगाई पक्की होने पर लड़की भी मां-बाप के घर को पर मानने लगती है। इसी प्रकार ज्ञानीजन शरीर से भो बिरगत रहते हैं। कहते हैं संसार में शरण नहीं। वो पर्याय को अपेक्षा है। यधिपंचपरमेष्ठो की शरण लेकर अपनी बारमा का घरुण लिया .
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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