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________________ | ३३३ बार बार बन्दूं जिन माता ! तू जीवन सुखदाई | मन चिन्तित वस्तुको देवे चिन्तामणि सम भाई ॥ रत्नत्रय अर ज्ञान समाधी शुद्धभाव इकताई । स्वात्मलाभ अर मोक्ष सुखोंकी सिद्धी दे जिनमाई ॥ ११ ॥ यः स्मर्यते सर्वमुनीन्द्रपंः स्तूयते सर्वनरामरेन्द्रः । यो गीयते देवपुराणशास्त्रः, बारमध्यान का उपाय स देवदेवो हृदये ममास्ताम् ।।१२।। सर्व साधु यति ऋषि और अनगार जिन्हें सुमरे हैं । चक्राधर अर इन्द्र देवगण जिनकी श्रुती करे हैं ॥ वेद पुराण शास्त्र पाठों में जिनका गान करे हैं । परमदेव मम हृदय विराजो तुझ में भाव भरे हैं ॥१२॥ . यो दर्शनज्ञानसुखस्वभाव:, समस्त संसारविकारबाह्यः । समाधिगम्यः परमात्मसंज्ञः, स वेवेवो हृदये समास्ताम् ॥१३॥ सबको देखन जानन वाला सुख स्वभाव सुखकारी | सब विकारि भावों से बाहर जिनमें है संसारी ॥ ध्यान द्वारा अनुभव में आवे परमातम शुचिकारी । परमदेव मम हृदय विराजो भाव तुझी में भारी ॥ १३ ॥ निषदते यो भवदुःखजालं, निरीक्षते यो जगवन्तरानं ।
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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