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________________ सलमापना [२१५ आत्मध्यान का उपाय ADDRPHARMAMALA हरएक निमात मानव स्वाधीनतापिय होता है और सुख व शांतिको चाहता है। आत्मा और कमपुद्गल इन दोनों के परस्पर सहबाससे आत्मा की शक्तियें पूर्ण विकाशरूप नहीं है तथा आत्माको अपने वर्तनमें बहुतसी बाधाएं उठानी पड़ती हैं। संसारमें इष्टका वियोग व अनिष्टका संयोग होना कर्मो की ही पराधीनता का कारण है। कोधादि भावोंका झलकना व पूर्णज्ञान का न होना कर्मों के उदयका ही कार्य है। जन्म-जन्म में भ्रमण करना, जरा व मरणके कष्ट उठाना कोका ही वेग है। इसलिए हरएक मानयका यह दृढ़ उद्देश्य होना चाहिए कि वह कर्मोकी संगतिसे छूट कर स्वाधीन हो जावे । फर्मोको संगति रान देष मोहसे हुआ करती है । इसलिए हमें इन भावों को दूर करके वीतरागता पूर्ण आत्मज्ञानके पानेका उद्योग करना चाहिए और उसके बलसे आत्माका ध्यान करना चाहिए । आत्मध्यानको हर एक साधु व श्रद्धावान गृहस्थ कर सकता है। जैनसिद्धान्तों ने मुख्य सात तत्वोंका जानना व श्रद्धान करना जरूरी बताया है। वे तत्व हैं--जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष । ___जीव-निश्चय से परमात्माके समान ज्ञाता, दृष्टा, अविमाशी, अमूर्तीक, परमशांत, सुखमई, चैतन्य धातुरूप, असंख्यात प्रदेशी है । इसका स्वभाव स्वाधीन आनन्द का भोग करते हुए
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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