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तत्त्वभावना
सचिवमंत्रिपदातिपुरोहितास्त्रिदशखेचरवंत्यपुरंदराः। यममटेन पुरस्कृतमातुरं भवभृतं प्रमति न रक्षितुम् ॥११२
अन्वयार्य-(सचिवमंत्रिपदातिपुरोहिताः) दीवान, मंत्री, पैदल, पुरोहिल तथा (त्रिदशखेचरदैत्यपुरंदराः) देव, विद्याधय, दत्य, इन्द्र (यमभटेन) जमालरूपी योद्धासे पुरस्कृत करे हुए (आतुरं) दुःखी (भवभुतं) संसारी प्राणीको (रक्षितुम्) रका करनेको (न प्रभवति) समर्थ नहीं होते हैं।
भावार्ष-यहां पर आचार्य कहते हैं कि जब मरणका समय आ जाता है तब कोई किसीको बचा नहीं सकता है। जिन सम्राटों के बड़े-२ मंत्री, दीवान, पंदल, सिपाहो व पुरोहितादि होते हैं व जिनके आधीन देव, विद्याधर, व्यंतरादि होते हैं व इन्द्रभो जिन की भक्ति करता है ऐसे चक्रवर्ती तीर्थकरादि भी मरणके समय पर इस शरीरमें फिर नहीं रह सकते हैं। जब महान पुरुषों की यह दशा है सब हम सबको तो कालके मुख में बैठा हुमा ही अपने को समझना चाहिए, ऐसा निश्चय कर मात्मकल्याणमें जरा भी प्रमाद न करना चाहिए।
पप्रनंदि मुनि अनित्यपंचाशत् में कहते हैंकालेन प्रलयं यजति नियतं तेपौवचन्द्रावयः । का वार्तान्यजनस्य कोटसवृशो शफ्तेरदीर्घायुषः ।। तस्मान्मृत्युमुपागते प्रियतमे मोहं मुधा मा कृथाः। कालः कोडति नान येन सहसा तरिकचिवन्विष्यताम् ॥५१
भावार्थ--जब इन्द्र, चन्द्र, आदि भी मरण के द्वारा निश्चयसे माश किए जाते हैं तब उनके मुकाबले में कीटके समान अल्पायु वाले अन्य जनकी तो बात ही क्या है ? इसलिए अपने किसी प्रिय