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________________ २७२ ] तत्त्वभावना जो पवन (गिरीणां चलिका) पहाड़ों की चोटियों को (विचलयति) हिला देती है(तेन)उस पवन से(गृहशिखरपताका) घरके शिखर को ध्वजा (कि न कंपते) क्यों न कांप जायगी? भावार्थ--आचार्य दिखलाते हैं कि मरणसे कोई भी संसारी प्राणी बच नहीं सकता। बड़ी-२ आयु के धारक व बड़ी सामथ्य के धारक इन्द्रादिक देवों को भी यह मरण नहीं छोड़ता है तब थोड़ी आयुधारी व थोड़ी सामर्थ्य धारी मनुष्योंको तो मरण कैसे छोड़ सकता है ? जिस समय मरण आ जाता है उस समय वह सब सम्पदा जिसको हम अपनी मान रहे थे बिलकुल छूट जाती है। मरण करते हुए जीवके साथ उसका वांधा पुण्य या पापकर्म तो जाता है परन्तु अन्य कोई चेतन व अचेतन पदार्थ बिलकुल साथ नहीं जा सकते हैं। वास्तव में कर्मभूमि के हम मनुष्य तथा पशओं का जीवन तो पानी के बुदबुदे के समान चंचल है क्योंकि जब देवों. के ब भोगभूमि जीवों के अकाल मृत्यु कोई बाहरी क्षयकारी कारण के मिलने से हो जाती है इसलिए हम लोगों के जीवन को हर लेना तो यमराज के लिए बिलकुल सहज है, यह बात बिलकुल ठोक है कि जो हवा पर्वतों के शिखरों को हिला सकती है उसके लिए घर के ऊपर की पताका को हिलाना क्या कठिन है ? कुछ भी नहीं। प्रयोजन कहने का यह है कि जब हम लोग मरण के मुख में सदा ही बैठे हुए हैं तब हम लोगों को धर्मसाधनमें व मात्महित में प्रमाद न करना चाहिए । ___ मानव जन्म में देवों के जन्मसे भी यह विशेषता है कि जिस संयम व ध्यानसे आत्मा परम पवित्र हो सकता है वह संयम तथा ध्यान इस मानव शरीरसे ही हो सकता है । इसलिए इस जन्म के समयको बड़ा ही मूल्यवान समझकर हमें इससे आत्महित
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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