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________________ [२५६ छोड़कर इसी पर चढ़ करके शिव महल में जा पहुंचना चाहिए। स्वामी अघुभाषित में कहते हैंविनिर्मलं पार्वणचंद्रकांतं यस्यास्ति चारित्रमसौ गुणज्ञः । मानी कुलीनो जगमोऽभिगम्यः कृतार्थजन्मा महनोय बुद्धिः । २३९ भावार्थ -- जिस पुरुष के अत्यन्त निर्मल पूर्णमासी के चंद्रमा के समान चारित्र होता है वही गुणवान है, वही माननीय है, वही कुलीन है वही जगत में वन्दनीय है, उसीका जन्म सफल है तथा वही महान बुद्धिका धारी है । तस्वभावना मूल श्लोकानुसार शार्दूलविक्रीडित छन्द जो नित निर्मल बुद्धिधार समझ संसार शिव हेतु को। छोड़ मथ के हेतु तोन सेती चित राखि शिव हेतु को ।। साधे जैन तपं ज् नाशकर्त्ता संसार बन भर्म को । शुचि योगो जीतव्य जन्म अपना करते सफल धर्म को || १०० १ उत्पानिका -- आगे कहते हैं कि विषयसेवन विष खाने के समान है शार्दूलविक्रीडित छन्द यो निःश्रेयसशर्म वा नकुशलं संत्यज्य रस्नव्रयम् । मोमं दुर्गमवेदनोदयकरं भोगं मिथः सेवते ।। मन्ये प्राणविपर्ययाविजनकं हालाहलं बल्भते । सद्यो जन्मजातकक्षयकरं पीयूषमत्यस्य सः ||१०१॥ अन्वयार्थ - (यः) जो कोई (निःश्रेयसमंदानकुशलं ) मोक्ष के सुख देने में चतुर ऐसे ( रत्नत्रयम् ) रत्नत्रय को (संत्यज्य ) छोड़ करके (भीमं दुर्गमवेदनोदयकरं ) भयानक और अचित्य वेदनाको पैदा करने वाले (भोगं ) भोग को ( मिथः ) एकांत में छिपके ( सेवते )
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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