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________________ तस्वभावना [२३५ अन्वयार्थ-(हतकहृदय) हे शून्य हृदय ! (येन) क्योंकि (यद्वत्) जैसे (तुला) तराजू का पलड़ा (तद्वत्) तैसे (भृशम्) बहुत अधिक (अर्थजाते गृह्यमाणे)पदार्थों को ग्रहण करते हुए यह जीव(अधस्तात् ब्रजति) नीचे को अर्थात् नर्कनिगोद आदि गति को चला जाता है (तत्र संत्यज्यमाने) और जहां पदार्थों को त्याग दिया जाता है तब (गतभरम्) भार से हलका होकर (सपरिष्टात्) ऊपर को भर्थात् स्वर्ग या मोक्ष को चला जाता है (तेन) इसलिए (दुरितहेतुं) पापबन्ध का कारण (संग) परिग्रह को (त्रिधा अपि) मन, वचन, काय तीनोंसे (जहिहि) त्याग दे। भावार्थ-यहाँपर आचार्य ने बताया है कि परिग्रहका भार इस जीव को नीच गति की तरफ ले जाने वाला है तथा परिग्रह के भार का त्याग ऊंची गति को ले जाने वाला है और इस पर तराजू का दृष्टान्त दिया है । जैसे तराजू के पलड़े पर जितना अधिक बोझा लादेगे वह अधिक-२ नीचेको जाएगा और जितना बोझा उसमें से निकाल लेंगे उतना ही वह पलड़ा ऊंचा होता जायगा वैसे ही जितनी अधिक मूर्छा होगी उतना ही इस जीव का पतन होगा व जितनी मुर्छा कम होगी उतनी हो इस जीव की उन्नति होगी। तत्वार्थसूत्र में कहा है-"ब ह्वारम्भपरिमहत्वं नारकस्यायुषः ।" बहुत आरम्भ व बहुत परिग्रह नरक आयु वन्ध का कारण है। "अल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्य" थोड़ा आरम्भ तथा थोड़ा परिग्नह मनुष्य आयुके नवका कारण है, जो परिग्रह का प्रमाण कर के श्रावक व्रत पालते हैं वे नियम से देवगति जाते हैं, जो परिग्रह को त्यागकर ममता को हटा लेते हैं व तप करते हैं उनके यदि कषायभाव या रागभाव बिलकुल न मिटा तब तो वे साधु स्वर्गों में १६ स्वर्ग तक व नौ प्रेवेयकों में या नव अनुदिश में व पांच अनुत्तर में चले जाते हैं। जितना-२
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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