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तस्वभाबना
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श्री पद्मनंदि मुनि यतिभावनाष्टक में कहते हैंलब्ध्वा जन्म कुले शुचौ वरवपुर्बुध्या भुतं पुण्यतो ! वैराग्यं च करोति यः शुचितपो लोके स एकः कृतो॥ तेनेवोज्झितगौरवेण यदि वा ध्यानामतं पोयते । प्रसादे कलशस्तवा मणिमयो हैमे समारोपितः ॥५॥
मावार्थ-पुण्य के उदयसे पवित्र कुलमें जन्म पाकर व उत्तम शरीर का लाभकर जो कोई शास्त्र को समझकर व वैराग्य को पाकर पवित्र तप करता है वही इस लोक में एक कृतार्थ पुरुष है यदि वह तपस्वी होकर मदको छोड़कर ध्यानरूपी अमृतका पान करता रहे तो मानो उसने सुवर्णमई महल के ऊपर मणिमई कलश चढ़ा दिया है। अर्थात् आत्मध्यानी ही सच्चे तपस्वी है बोर वे ही कर्मों को काटकर मोक्ष के अधिकारी होते हैं।
मूल श्लोकानुसार मालिनी छन्द जो संयम पाले लोकके अग्न जाये । सुखकृत शुचि गुणका, परिणमन नित्य पावे ।। जो जन श्रम करके मेरू ऊपर सिधारे। सब हो पृथ्वीको आप हो निम्न डारे ॥६॥ जत्थानिका-आगे कहते हैं कि इस संसारचक्रमें सच्चा सुख नहीं मिल सकता।
मालिनी वृतम् विमकरकरजाले शैत्यमुष्णमिदोः । सुरशिखरिणि जातु प्राप्यते मंगमस्वम् ॥