________________
तस्वभावना
करता है वही सुख शांति को पाता हआ मोक्षमार्ग पर चलने घाला है । जैन मंदिरों में जो नित्य पूजा के पीछे शांतिपाठ पढ़ा जाता है उसमें भी इसी तरह की भावना बताई है । जैसे
शास्त्राभ्यासो जिनपवनुतिः संगतिः सर्ववाध्यः । सदवृत्तानां गुणगणकथा दोषवादे मौनम् ॥ सर्वस्यापि प्रियहितबची भावना चास्मतत्त्वे। सम्पद्यन्तां मम भव भवे यावदेतेऽपवर्गः ।।
भावार्थ-जब तक मोक्ष न हो तब तक भव में इतनी बातें प्राप्त हों (१) शास्त्र पठन (२) जिन भक्ति (३) सत् पुरुषों की संगति (४) सुचारित्र बालोंके गुणों की कथा (५) परनिंदा न करना (६) सबसे प्यारे मीठे वचन बोलना (७) आत्मतत्व में विचार रहना .
जहां तक आत्मतत्त्व भले प्रकार न जाग्रत हो वहाँ तक व्यवहार धर्म में देवशास्त्र गुरुका आराधन करते ही रहना चाहिए । श्रीपद्मनंदि मुनि परमार्थविशति में इस तरह कहते हैं
वेवं तत्प्रतिमां गुरुं मुनिजनं शास्त्रावि मन्यामहे । सर्व भक्तिपरा अयं व्यवहतौ मार्गे स्थिता निश्चयात् ॥ अस्माकं पुनरेकताश्रयणतो व्यक्तीमयचिदगुणाः। स्फारोभूतमतिप्रबंधमहतामात्मैव तत्त्वं परम् ॥
भावार्थ-हम व्यवहार धर्म में चलते हुए अत्यन्त भक्तिर्वत हों जिनेन्द्र देव को, उनकी मूर्तिको, मुनीश्वरको व शास्त्र आदि सर्व को मानते हैं अर्थात् इन सबकी सेवा किया करते हैं। परन्तु जब हा रत्नत्रय की एकता अर्थात् समताभाव का आश्रय करेंगे और हमारे भीतर चैतन्य तत्त्व प्रकट होकर बुद्धि विशाल हो