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________________ [ १४३ मान लोग ( कदाचनापि ) कभी भी नहीं (कुर्वते ) करते हैं जैसे (शीतं नुनुत्सवः ) शीतको दूर करने की इजा करते वाले (सा) बुद्धिमान लोग (जातु ) कभी भी (शिखिनं ) अग्निको (न विध्या पते) नहीं बुझाते हैं । तस्वभावका भावामं - यहां पर माचार्य ने बताया है कि बुद्धिमान मानव वे ही हैं जो विचार के साथ इस संसार में काम करते हैं, हरएक मानव को अपना लक्ष्यविन्दु बना लेना चाहिए और जो लक्ष्य हो उसीके साधन की जो क्रियायें हों उनको मन वचन काय से करना चाहिए। जिसको शीत लग रही है और वह शीत से बचना चाहते हैं तो वह अग्नि को कभी नहीं बुझावेगा क्योंकि अग्नि उसके हित में साधक है। इसी तरह जो बुद्धिमान लोग अपने आत्माको उन्नति करना चाहते हैं वे ऐसे हो साधनों को करेंगे जिनसे तत्वों का जान होकर यह विवेक हो जाने कि क्या तो त्यागने योग्य हैं व क्या ग्रहण करने योग्य है तथा जिस चारित्र से मोक्षका लाभ होगा उसी चारित्र को पालेंगे व जिस तरह मन में संसार देह भोगों से वैराग्य रहे वह उद्यम करेंगे जिस ध्यान से कर्म पर्वतों का चूरा हो वैसाही ध्यान करेंगे, जिस तरह आत्मा का अनुभव हो जाये ऐसा लप साधेंगे। कभी भी ऐसे प्रपंचोंमें न फसेंगे कि जिनमें फसने से तत्वज्ञान न हो, वैराग्य म हो, कर्मका नाश न हो व मोक्ष की प्राप्ति न हो। पुत्र, प्रयोजन कहने का यह है कि मानवोंको स्त्री' मित्रादि धन परिग्रह में ममता बुद्धि रखकर अपना अहित न करना चाहिए सर्व पर पदार्थोंको अपने से भिन्न जानकर उनसे मोह निवारण कर आत्महितके लिए स्वाध्याय ध्यान सत्संगति आदि में लगे रहना चाहिए। गृहस्थ में रहे तो जल में कमल के समान भिन्न
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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