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________________ ६ मध्यमन्यादानरहरन्ये गण्टः 2 . का...* 'मुख पुछ व पाण्डर इत्पत्र सप्तम्यर्थ चार * संयोगावच्छेदकावच्छिन्नसमवायसम्बन्धावच्छिमाधारतायाः सत्रिकर्षत्वेनैतत्कपालावच्छिन्नघटसंयोगस्याऽन्यकपालावच्छेदेन चतु:संयोग - तच्चाक्षुषातृदयनिर्वाहात् अनुपदोक्तकारणत्वस्य नियुक्तिकत्वाच्च । 'मुखे पुच्छे च पाण्डुर' इत्यादौ तु मुखादिवृत्तिपाण्डुरत्वादिकमेवाऽवयविनि प्रतीयत -* जयलता - द्रव्यस मोरचाक्षुपत्वावच्छिन = द्रव्यसमरतगोचरचाक्षुषमात्र प्रत्येव चक्षुःसंयोगावच्छंदकावच्छिन्नसमवायसम्बन्धावच्छिन्नाधारतायाः = चक्षु:संगोगावच्छेदकतिपयदशावच्छिन्त्रां प: समवायसम्बन्धः तदवच्छिन्नाधारतानिरूपिताया आधेयतायाः सन्निकपंत्वन = चक्षुः कारणतावदकप्रत्यानिचोपगमन रतत्कपालापच्चिन्नघटसंयोगस्य = एनन्कपालायलंदन घटसमवेता या घटनयनपदादिसंयोगः तस्य अन्यकपालावच्छेदेन चक्षुःसंयोगतचाक्षुपानुदयनिर्वाहात = कारणतावच्छदारसम्बन्धघटकीभूतचक्षुःसंयोगानुदयस्य तदानी मतत्कापालायचित्रपटसमवेतपटपटादिसंयोगगोचरचाक्षुषानुत्पन भोपपने:, अनुपदोक्नकारणत्वस्य नियुक्तिकत्वाचेति । लौकिकविषयतया द्रव्यसमदतचाक्षपसामान्य प्रति संयोगावच्छेदकान्त्रिसमवायसम्बन्धावच्छिन्नाधारतानिरूपिताधेयतासम्बन्धन चक्षणः काग्णन्चम्यावश्यक्लप्तत्त्वान् एतत्कपालावछिन्नघटादिसंयोग्गोचरचाक्ष प्रति स्वसंयोगावच्छेदकतत्कपाळावचिन्नममनायाच किनाधारतानिरूपिताधेयतया चक्षुपः कारणत्वात अन्यकपालावच्छेदन पशु:संयोगे सनि निरुतसम्बन्धन चक्षुषम्नत्रा वर्तमानत्वान संयोगावच्छेदकान्यकपालावच्छिन्नसमवायसम्बन्धावन्भिन्नाधारतानिरूपिताधेयतायाश्च तत्कारणतानव-न्दै दकसंसर्गत्वान्न तदानामिनतकपालावच्छिन्नबटादिस्यग विषयटया चाक्षुषो तानिः । न चैनं नीलपीतकापालाम्बयंट व्याप्यनिनीलपीतादिम्बाकागत्पनिर्गिन वाच्यम् , कंपग्यदकामावपि कपिसंयोगस्यागच्छेदकाभ्युपगमन न्यायवृजेबछन्दकबिगह:पि शायनानपनापास्तायाः मावन्लिन्नन्याभ्युपगमात । अतं नालगानादिपवघटसमचतानादिवानुपलावच्छिन्नं प्रति मायछेदकगीतादिकपालावन्निसम्बारसम्बन्धावच्छिन्नाधास्तानिरूपिताधेयतसम्बन्धन वरूपः कारणत्वा. श्रीलकपदावछंदेन चक्षुःसन्निकर्षददायां निरुक्तसम्बन्धेन चक्षुषः गातादाबस्वान्न तदानीं पीतादिचाक्षुषपमङ्ग इति नानाजातीयरूपवदवयवारन्धावयचिनि व्याप्यवृत्तानि नीलतादीनि ग्वाकुर्वतामपरेषामाशयः। ननु व्याप्यवृत्तिनानागाभ्युपगम नलवृषपरिभाषा कधं सहान, श्वेतपाण्डुरदीनां व्याप्यवृनित्वेन सप्तम्या अवछिन्नत्वर्थे सङ्गत्यनुपपने रित्याशङ्कायामाह - 'मुखे पुन्छे च पाण्डुर' इत्यादी तु सान्या वृत्तित्वार्थ एव मङ्गने: मुखा. दिवृत्तिपाण्डुरत्वादिकमेव - मुखादिनिष्ठाधारतानिरूपिना धयनाबिप्राष्टपाण्डत्वादिकनंब अश्वविनि नीलवप ग्यममवापिसमनत्वसम्बन्धन प्रतीयते, नन मुखाद्यवछिन्नपाण्डत्यादिकमयचिनि समवायन प्रतीयते । एतेनान्वर्यापन प्रत्य चाक्षुप की अन्य कपालावच्छेदेन चक्षुसंयांग होने पर आपत्ति नहीं आयेगी। इसका कारण यह है कि लांकिक विषयता सम्बन्ध से व्यसमवेतचाक्षुपमामान्य के प्रति स्वसंयोगावच्छेदक विपयंदेश से अवच्छिन्न समशयसम्बन्य से अवच्छिन्न विषयाभाग्ना में निरूपित आधेयतासम्बन्ध में चक्ष कारण है- ऐसा स्वीकृत है । अन्य कपाल में चागंयोग होने पर एनकपाल चक्षुसंपांग का अवच्छेदक नहीं होने से ग्यप्रयोगावच्छेदकारविरसमवायअवचिंबाधारतानिरूपित आधेमतासम्बन्ध में चक्षु नव पनल्कापालावच्छिन्न. घटसंयोग में नहीं रहने की वजह वहां लोकिकविवपनासम्बन्ध मे चाक्षुप की अनुत्पनि का निर्वाह हो जाता है । अगाव अभी यनुमत्त में जिस गुरुतर कारणता की कल्पना की गई है वह युक्तिशून्य है । नीलपीतनादिकपालाग्न्ध घट में व्याप्यनि नील, पीत, शुक्ल आदि वर्ण होने पर भी नीलकपालावस्येदन चक्षुसंयोग होने पर घटगत पीनादि रूप के चाक्षुप की उत्पनि का प्रसङ्ग नहीं होगा, क्योंकि व्याप्यक्ति की आधारता का अवच्छेटक हमार मत में मान्य होने से नब म्बसंयोगावठदकान्छिन समवायअवधिमाधाग्नानिपिनायनासम्बन्ध में चभ घदसमबन मील रूप में रहती है, न कि घटसमवेत पीनादि रूप में । अतएव लाकिफाविषयता गम्बन्ध से पीनादि रूप में इन्चसमवनचाक्षुप की उत्पनि का कार्ड प्रमंग नहीं होगा। कार्यतार सब सम्बन्ध में कार्याधिकरणविषया अभिमत में कारणनारमदयमम्पन्ध से कारण न रहने पर कार्य की उत्पनि का पालन नहीं किया जा सकता । इस नन्द दोनों दांप का परिहार प्रदर्शित एक कार्य-कारणभाव में हो जाने में या तो अन्यकपालायच्दन नेत्रसंयांग होने पर पताकपालगनघटगयांग के चाक्षुप के परिहाग अवश्यम्लन कार्यकारणभाव मे ही नीलकपालावच्छंटन नगयांग होने पर व्याप्यवृत्ति पानादि रूप के चाय की आपनि का पारण हो जाने में यनुमतप्रदर्शित निगम कार्यतावच्छंटकवाला कार्यकारणभाव मान्य नहीं किया जा सकता । इस तरह नील-पीत-श्रेतादिकपालारच घाट में ज्याप्यनि नील, पीत, शुक्ल आदि अनेक रूप का स्वीकार ही उचित है। यहाँ यह शंका हो कि --> "यदि नानारूपपदवयों में आरम अवयत्री
SR No.090488
Book TitleSyadvadarahasya Part 3
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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