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________________ रानभद्रमतमीमांसा * सचिवा अत्र रूपवनीरूपोभयावयवारब्धावयविनि चित्रानुत्पत्तिस्त स्वाश्रयसमवेतत्वसम्बन्धेन रूपाभावाभावरूपजन्यरूपत्वावच्छिन्नसामग्यभावादेवेति बोध्यम् । -* जयला . * हेतत्त्वं चित्रेतरतानि च स्वाश्रयममवेतत्वसम्बन्धन चित्राभावस्य हेतुल्वम । यत्रकावयवे नील तत्र स्वरूपेण चिनेतरपीताभावग्य विद्यमानत्वात् अपरत्र व पीतं तत्र स्वरूपसम्बन्धन चित्रेतरनीलाभावस्य सन्चात घंटे स्वाश्रयसमवेतत्वसम्बन्धेन चित्रेतराभाबस्य सत्चन चित्रोत्पत्निसम्भव इत्येवं रामभद्रसार्वभौममनं व्याचक्षते, तन्मन्दम्, एवं सति नीलकपालद्वपारधेऽपि घटे चित्रोत्यादप्रसङ्गस्य दुरित्वात घट स्वाश्रयसमदतत्वसम्बन्धेन चित्रेतरपाताभावस्य सत्त्वात् । न च चित्रेनरयावद्रपाभावस्य निरुक्तसम्बन्धेन । तहेतुत्वान्नायं दोष इति वाच्यम, गौरवात्, रामभद्रेण तथा नभ्युपगमाच्च । एतेन प्रतिबन्धकनारच्छेदकसम्बन्धगौरवं कार - णतावच्छेदकसम्बन्धगारवश्च प्रदर्शितं इति दिक् । नन समवायन चित्र प्रति स्वसमवागिसमवेतत्वसम्बन्धन रूपत्वावच्छिन्नस्य कारणत्वा-गीकारे योश्चयी रूपवता नीरूपण चावयवन समारब्धस्तत्रापि चित्ररूपांत्पादः स्यात चित्रकारणस्य रूपस्य सत्तादित्याशङ्कायामाह अत्र = समवायंन चित्रं प्रति समवायन चित्रंतररूपस्य प्रतिबन्धकत्वं स्वसमवायिसमवेतत्वसम्बन्धेन रूपस्य कारणत्वमिति रामभद्मावनौममते, रूपचनीरूपोभयावयवारब्धावयरिनि = रूपविशिष्ट-रूपशून्यो भयावयवाभ्यामारवयविनि चित्रानुत्प श्रयसमवेतत्वसम्बन्धन रूपाभावाभावरूप-जन्यरूपत्वावच्छिन्नसामग्ग्रभावात् = रूपाभावप्रतियोगिकाभावस्वरूपाया जन्यरूप. त्वावछिन्नस्य सामग्या विरहात पवेति बोध्यम् । इदमत्राकूनं समवायेन चित्रं प्रति स्वसमवायिसमवनत्वसम्बन्धेन कारणत्वं समवायन रुपं प्रति च स्वाश्रयसमदतत्वसम्बन्धन रूपाभावस्य प्रतिबन्धकत्वं रूपाभावाभावस्य च कारणत्वम् । रूपवत्रीरूपो भयावयत्रारब्धः वयचिनि म्बाश्रयममवतल्यसम्बन्धेन रूपस्य चित्रकारणस्य सत्त्वेऽपि स्वाश्रयसमवंतत्वसम्बन्धेन रूपनतिबन्धकस्य रूपाभावस्य सत्त्वेन झपकारणस्य रुपाभावाभावस्य विरहान चित्रोत्पादासनः सामान्यसामग्रीसमरहिताया एव | विशेषयामग्याः कामांजकत्वनियमात । न च स्वसमवायिसमवेनत्वसम्बन्धन रूपरया वयचिनि सत्त्वं रूपाभावाभावस्यापि तत्र मिद्धिः अभावप्रतियोगिकामावस्य प्रथमाभावप्रतियोगिस्वरूपत्वादिति वक्तव्यम, रूपाभागभावस्या भावत्वेन प्रतीयमानस्य भावचन झायमानाद्रूपादतिरिक्तत्वाभ्युपगमात् । एतत्सुचनार्थमंत्र रूप प्रति स्वाश्रयसमवेतत्वसम्बन्धन रूपाभावाभावस्य कारणत्वमुक्त अन्यथा स्वसमवायिममवनत्वसम्बन्धस्य रूपकारणाताबच्छेदकविंधयोपादानं कृतं म्यादिति ध्येयम् । अत्र समवायेन चित्रं प्रनि स्वसमवायिसमवेनत्वसम्बन्धन रूपत्वावच्छिन्नस्य कारणत्वं चित्रेतररूपाभावस्य च स्वरूपसम्बन्धन कार्यसहभावेन कारणवमिति पूर्वमनत्वान रूपवत्रीरूपोभयाचयवारब्धावयविनि चित्रीत्पादापादकस्यैव विरहः, तदा स्वरूपेण चित्रेतररूपाभारस्यैव विरहान । अतस्तत्र चित्रोत्पत्तिनिराकरणार्थ रूपं प्रनि स्वाश्रयसमवेतत्वसम्बन्धेन रूपाभावाभावस्य प्रतिबन्धकाभावविधया कारणाभिधानमननिप्रयोजनं गौरवग्रस्तञ्च । म.पसामान्यसत्त्वं रूपाभावबद्धधनुदयात रूपाभावाभावव्यवहाराच रूपाभावाभावस्य रूपानतिरिनत्ववादिनां प्राचां मतेन सह विरोधश्चात्राधिक इत्यस्माकमाभाति । चित्ररूपाभावस्वरूप चित्रंतररूपकारण के अभाव से चित्रेतररूप = नील आदि रूप की उत्पत्ति का अतिप्रसंग नहीं हो सकता'। रूप के प्रति रूपाभावाभावत्तेन कारणता - अब रूप. इति । यहाँ यह शंका करना कि -> 'चित्र रूप के प्रति रूपसामान्य को कारण मानने पर नो रूपी और अरूपी दो अवयव से आरय अवयवी में भी चित्र रूप की उत्पनि का अनिष्ट प्रसंग आयेगा, क्योंकि स्वसमवापिसमवेत्तत्व सम्बन्ध से चित्ररूपोत्पादक रूपसामान्य (रूपी अवयव का रूप) उस अचयत्री में रहता है' -ठीक नहीं है। इसका कारण यह है कि उस अवयवी में स्वसमवायिममवेनत्व सम्बन्ध से रूपसामान्य, जो चित्ररूप का जनक है, होने पर भी रूपमामान्य की मामग्री नहीं होने में वहाँ चित्र रूप की उत्पत्ति नहीं हो सकती । रूपसामान्य के प्रति स्वाश्रयसमवेतत्व सम्बन्ध से रूपाभागाभाच कारण है। वह अवयवी रूपी और अरूपी अवपवों से आरब्ध होने से स्वाश्रयसमवंतत्वसम्बन्ध से पाभाव का, जो समवाय सम्बन्ध से उत्पन्न होनेवाले रूप के प्रति प्रतिवन्धक है, आश्रय होने से स्वाश्यसमवेतत्व सम्बन्ध से रूपाभावाभाववाला नहीं है । रूपाभावाभावात्मक रूपसामान्यसामग्री ( = रूपत्वावच्छिन्नसामग्री) स्वाश्रयसमचेतत्त्वसम्बन्ध से न रहने पर रूपविशेष = चित्र रूप की उत्पत्ति का आपादन कम किया जा सकता है। सामान्य कार्य की सामग्री होने पर ही विशेष कार्य की सामग्री में कार्यविशेष (यहाँ वित्र रूप) की उत्पत्ति हो सकती है। यहाँ रूपसामान्यकारणतावञ्छंदक | सम्बन्ध के घटकीभूत स्वपद में रूपाभावाभाव का ग्रहण अभिमत है. यह ज्ञातव्य है ।
SR No.090488
Book TitleSyadvadarahasya Part 3
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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