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४०४ मध्यमस्याद्भादरहस्ये गुण्टा ३ का ५ * नीलाभावादभित्रकारणताविचारः
केचितु
नीलाभावादिषट्कस्यैव तद्धेतुत्वम् । न च नीलपीतोभयकपालारब्धे घंटे पाकनाशितावयवपीतस्वचित्रेऽवयवे व्याप्यवृतिनीलोत्पत्तिकाले तदापत्तिः, कार्यसहभावेन तस्य
* जयलता *
चक्षुष्टुवेनेव कारणन्तेऽपि अञ्जनादिकान्दीनचाक्षुष प्रति अञ्जना हेतुत्यान्नास्माकं रात्री अञ्जनादिसंस्कृतचक्षुषां तस्करादीनां चाक्षुषमिवाञ्जनादिकालीनं चाक्षुषमुपजायते तथव चित्रत्वावच्छिन्नं प्रति पृथिवीत्वेनैव कारणत्वेऽपि रूपजचित्रं प्रति नीलंतरप्रतिनदिरपि जनकत्वान्न नीलमानारब्धे चित्रोत्पादप्रसङ्गः । एनेन तत्र रूपजं चित्रं मास्तु, चित्रमात्रं तु स्यादिति प्रत्युक्तम्, अन्यत्र चाक्षुषे आलोकसंयोगादेखि रूपनाऽतिरिनचित्रे पाकस्य हेतुत्वाभ्युपगमान । समवायेन चित्रत्वावच्छिन्नं प्रति तादात्म्येन पृथिया: रूपजविनं प्रति स्वसमवायिसमवेतत्वादिसंसर्गेण पाकस्य हेतुत्वमिति न नीलमानसमा चित्रांगद प्रसङ्ग इति तु निष्कर्ष: ।
समवायेन तस्मात्सर्गेण नीलंतर- पतितर- रक्ततरादिषट्कस्थ हेतुत्वकल्पनापेक्षया स्वाश्रयसमवेतत्वसम्बन्धेन नीलाभावादिपदकस्यैव हेतुत्वं कल्पयितुमर्हति अन्योन्याभावापेक्षया उत्यन्ताभावस्य लघुतरशरीरत्वात् । युक्तनदेव. अन्यथा कायदे नाले अपर व पीतजनकाशिसंयोगस्तत्र चित्रोत्पादाऽ नापनेः नीलेतरादिषट्कस्य तत्र विरहादित्याशयवतां केषाञ्चिन्मनं प्रकरणकारः समावेदयति केचित्त्विति । नीलाभावादिषट्कस्यैव तद्धेतुत्वं = चित्रकारणत्वं, एवकारेण नीलंतर- पतितरादेर्व्यवच्छेदः कृतः ।
ननु चित्रं प्रति नीलाभावादिपदकस्यैव हेतुत्वेऽभ्युपगम्यमाने तु यो घटः नीलपीतकरालाभ्यां समारम्भस्तत्र पाकेन यदा कपालपीतरूपं घटसमवेतचित्ररूपं च नाइयते तदनन्तरं पाकनाशितपीतरूपं कपाले व्याप्यवृत्ति नीलरूपं सञ्जायते तत्समकालमेव घंटे चित्ररूपोत्पादन दुर्निवार:, तदव्यवहितपूर्वक्षणावच्छेदेन घंटे स्वाश्रयसमवेतत्वसम्बन्धेन नीलाभावादिषट्कस्य विद्यमानत्वात् । चित्रं प्रति नीलंतर परततरादेः हेतुत्वं तु नायं प्रसन्न, पाकनाशितपीतरूपकपालवृत्तित्र्याप्यवृत्तिनीलोत्पत्तिकालाऽव्यवहितपूर्वक्षगावच्छेदन गीलेतरादिरूपस्य स्वसमवायसमवेतत्वसम्बन्धेन पटेऽविद्यमानत्वान् । ततश्व नीलंतरांदेरेव तद्धेतुत्वं युक्तं न तु नीलाभावादिकस्येति शङ्कामपाकर्तुमुपक्रमते > न वेति । नीलपीतोभयकपालारब्धे = नीलपीतकपालाभ्यामार घंटे अवयविनि तदापत्तिः प्रकृतेनवीयते पाकनाशितावयवपीतस्वचित्रे = पांकेन नाशितं अवयवपीत कपालपीतरूपे स्वचित्र
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घरू सति अवयवे चटगवायिकारण कपाले पांकन व्याप्यवृत्ति - नीलोत्पत्तिकाले - स्वाभावासमानाधिकरणनीलरूपोत्पादक्षणावच्छेदेन तदापत्ति चित्ररूत्पादापतिः । शङ्काग्रन्थी भावितार्थ एवानुपदम । तन्निराकरणे हेतुमावेदयन्ति कार्यसहभावेन कार्योत्पादसमकालीनत्वेन न तु कार्योत्पादाऽव्यवहितपूर्वकालिकत्वेन तस्य नीलाभावादि
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कार्यसहभाव से हेतुता का विचार
केचि इति 1 चित्र रूप के विषय में कुछ विद्वानों का यह मन्तव्य है कि "चित्र रूप के प्रति नीलाभाव, पीताभाव, रक्ताभाव, नाभाव, कृष्णाभाव, और हरितवर्णाभाव- ये छ कारण हैं। नीलाभावादिपटक स्वाश्रयसमवेतत्व संबन्ध से चित्र रूप का हेतु होने से जहाँ एक अवयव में नील रूप है और अन्य अवयवों में पीतजनक अग्निसंयोग है वहाँ अवयवों में पीत रूप की उत्पत्ति के पूर्व भी अवपत्री में चित्र रूप की उत्पत्ति मानने में कोई बाधा नहीं है, क्योंकि नीलाभाव, पीताभाव आदि पट्क स्वाश्रयसमवेतत्व सम्बन्ध से घटात्मक अवयत्री में विद्यमान है। अतः समवाय सम्बन्ध से चित्र रूप के प्रति स्वाश्रयसमवेतत्व सम्बन्ध से नीलाभावादिपक की ही कारण मानना संगत है। यहाँ यह शंका हो कि > 'जहाँ नील पीत दो कपालों से चित्र घट उत्पन्न होता है और पाक से पीत अवयव के पीत रूप का और स्व = घट के चित्र रूप का नाश होता है यहाँ नष्टपतिरूपवाले अवयव में पाक द्वारा व्याप्यवृत्ति नील रूप की उत्पत्तिकाल में घट में चित्र रूप की उत्पत्ति का प्रसंग होगा, क्योंकि उसकी अव्यवहित पूर्व क्षण में घट में स्वाश्रयसमवेतत्व सम्बन्ध से नीलाभावादिषट्क विद्यमान है, किन्तु वस्तुस्थिति यह है कि बस घट में चित्र रूप उत्पन्न नहीं होता है तो यह असंगत है, क्योंकि नीलाभावादिपक में चित्र रूप के प्रति कार्यसहभावेन हेतुता है । अत: कार्योत्पत्ति की अन्यवहित पूर्व क्षण में नीलाभावादिपट्क की विद्यमानता अनपेक्षित है। किन्तु कार्योत्पत्तिकाल में ही नीलाभावादिषट्क की विद्यमानता अपेक्षित है । चित्ररूपांत्पत्तिक्षण में नीलाभावादिपदक के रहने पर ही चित्ररूपात्मक कार्य की उत्पत्ति हो सकती है। उपर्युक्त स्थल में नष्टपीतरूपवाले कपाल में व्याप्यवृतिनीलरूपोत्पत्तिक्षण में नीलरूपाभाव नहीं होने से चित्ररूपोत्पत्ति के प्रसंगरूप दोष का सम्भव नहीं है ।