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________________ श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथाय नमः । श्रीमद्विजय-प्रेग-भुवनभानु जयघोषसूरीश्वरेभ्यो नमः । ऍ नमः । महामहोपाध्याय - न्यायविशारद - न्यायाचार्य श्रीमद्-यशोविजयगणिवरविरचितम् मुनियां विजयकृत- जयलता रमणीयाभिधानव्याख्याभ्यां भूषितम् स्याद्वादरहस्यम् (मध्यम) (तृतीय: खण्ड: ) अधानेकान्तवादे योग- वैशेषिकी अपि सन्मानयन्ति चित्रमिति चित्रमेकमनेकय रूपं प्रामाणिकं वदन् । योगो वैशेषिको वापि नानेकान्नं प्रतिक्षिपेत् ॥५॥ यद्यपि चित्ररूपाभ्युपगन्तारी साम्प्रदायिको नैयायिक-वैशेषिकौ चित्रे घटे ल गयलता ज्ञानावृविक्षयप्रापकेवलाऽऽलोकशालिले । नमोऽस्तु सततं तस्मै कारुण्यकेनिशालिने ||५|| नवमकारिकावतार्थमुपक्रमते अथेति 1 सन्मानयन्ति मूलकुन श्रीहेमचन्द्रसूरय इति दीप बीतरागस्तोत्र विवरणकृतस्तु प्रकृतं एकं चित्रं रूपं तत्रैव चानेकाकाररूपं प्रमाणेनोपपन्नं वदन्ती अक्षपाद कणादी न स्याद्वाई निराकुरुत: । तेपां हमने मेचकज्ञानमेकमनेका कारमुररीक्रियते यतः तेषामेचे सिद्धान्तसिद्धिः एकस्यैव चित्रपटा | देवलाल रक्कारताना नावृताने कविरुद्ध धर्मोपलम्भेऽपि दुर्लभो विरोधगन्धः । तस्मादरमद्वद यौगिक-वैशेषिकासकान्नमनानुमतिं वितन्वन्ती (वी. स्ती वि.पू.८३) इत्येवं विवृतवन्तः सङ्क्षेपतः । - . प्रकृतप्रकरणकार: नवमकारिक व्याख्यानयति यद्यपीति अस्य चाग्रे ( दृश्यतां ६०७ तमे पृष्ठे ) तथापीत्यनेनान्वयः । चित्ररूपाभ्युपगन्तारी = नीलपीतादिव्यतिरि कच्चिनवर्ण स्वीकतारी, साम्प्रदायिकी स्वगुरुपरम्परायानमिद्धान्तानुयायिनी रमणीया एवीं कालिका को प्याख्या इति । आठवीं कारिका की व्याख्या के अनुसार अनेकान्तवाद का स्वीकार जैसे प्रकारान्तर से योगाचार बीज करता है, ठीक वैसे ही अन्य पद्धति से योग = नैयायिक और वैशेषिक भी सापेक्षवाद को मान्य करते हैं। अतएव मूलकार श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा वीतरागस्तोत्र के प्रस्तुत अष्टम प्रकाश की पूवीं कारिका में तैयायिक और वैशेषिक का अनेकान्तवाद में सन्मान करते हैं कि एक चित्र रूप अनेकात्मक एवं प्रामाणिक है' ऐसा बोलने वाला नैयायिका वैशेषिक भी अनेकान्तवाद का प्रतिक्षेप कर सकता नहीं है। इस कारिका का यह सामान्य अर्थ है। अब प्रकरणकार श्रीमद महोपाध्यवजी महाराज इस कारिका की व्याख्या करते हैं, यह बताई जा रही है। सर्वप्रथम आपातत: मूल कारिका के शब्दार्थ की अनुपपति 'को 'पि' शब्द के द्वारा विस्तार से बताते हैं । बाद में आगे चल कर 'नथापि' शब्द से प्रस्तुत कारिका के तात्पर्यार्थ को प्रकरणकारभी योतित करेंगे (देखिये पृष्ट ६०७) । यह वाचकवर्ग को ध्यान में रहे। सुनिये, 'यद्यपि शब्द से प्रस्तुत वाच्यार्थ की असंगति की रामकहानी ! यद्यपि चित्र रूप का स्वीकार करने वाले साम्प्रदायिक सम्प्रदायानुगामी नैयायिक =
SR No.090488
Book TitleSyadvadarahasya Part 3
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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