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________________ * विप्रतिपत्तिप्रकाशनम् * २४१ मध्यमस्याद्वादरहस्ये खण्डः २ का. ५ वस्त्वसाधकत्वाद, घटत्वादेः घटादिनिष्ठप्रतियोगितावच्छेदकत्वात्, घटत्वादेः पटादिप्रतियोगि * गयलता है । पटादिप्रतियोगिका भावीय प्रतियोगितावच्छेदकत्वसाधनेऽप्रत्यलत्वात् । किं घटत्वादेः नैव कस्याश्चित्प्रतियोगिताया अवच्छेदकत्वमित्याशङ्कायामाह - घटत्वादेः घटाद्यभावविशेषणी भूतघटादिनिष्ठतया घटादिनिष्ठप्रतियोगितावच्छेदकत्वात्, एकत्र विशेषणतया - न्वितस्याऽन्यत्र विशेषणत्वायोगात् घटादिविशेषणीभूतस्य घटत्वादेः पटादिनिष्ठप्रतियोगितावच्छेदकत्वाऽसिद्धेरिति । अयं मूलपूर्वपश्चिणोऽभिप्रायः प्रतियोग्यवृत्तिर्धर्मः प्रतियोगितावच्छेदको भवितुं नार्हति किन्तु अभावविशेषणीभूतप्रतियोगिविशेषणीभूतधर्म एवात्यन्ताभावीयप्रतियोगितावच्छेदको भवितुमर्हति विद्यमानं सदूष्यावर्त्तकं विशेषण विशेषणवृत्ति च विशेषणतावच्छेदकं भवतीत्यत्र न काऽपि विप्रतिपत्तिः किन्तु प्रतियोगितावच्छेदकं प्रतियोगिवृत्त्येव न वा ? इति विप्रतिपत्तिस्त्र । विधिकोटि: ननुवादिनः निषेधकोटिश्च स्याद्धादिनः । किन्तु विधिकोटिरेवाऽङ्गीकर्तुमर्हति यतः अभावविशेषणतावच्छेदकत्वाभावप्रतियोगितावच्छेदके समानवित्तिवेद्ये एकसामगीग्राये । यथा 'घटो नास्तीत्यत्र स्ववृत्तिप्रतियोगितानिरूपितानुयोगितासम्बन्धेनाऽभावविशेषणीभूतघटविशेषणतया ज्ञातस्य घटत्वस्यैव तदभावप्रतियोगितावच्छेदकत्वम् यतः समकालमेव घटत्ववृत्तितया अभावस्य विशेषणतावच्छेदकत्व - प्रतियोगितावच्छेदकत्वे ज्ञायेते । यत्र चाभावविशेषणतावच्छेदकत्वं न ज्ञायते तत्राऽभावप्रतियोगितावच्छेदकत्वमपि नावबुध्यते । 'घटत्वेन पटो नास्तीत्यादौ यदि घटत्वादेः पदादिप्रतियोगिकाभावीय प्रतियोगितावच्छेदकत्वमभिमतं तर्हि अभाव| विशेषणी भूतपटादिवृत्तित्वेन तद्भानमावश्यकम् । भवत्येवेति चेत् ? तर्हि अत्र विमलविकल्पयुगली समवतेतीयते तद्भानं प्रमात्मकं यदुत भ्रमात्मकं भवति ? नाऽऽयः क्षोदक्षमः घटत्वादेः घटादिवृत्तित्वेन पटादिवृत्तित्वेन तत्प्रमाया असम्भवात् । नाऽपि द्वितीयः मतिमतां रतिप्रीतिदायी, तदभाववति तत्प्रकारकत्वविशिष्टरूपस्य भ्रमस्य वस्तुसिद्धिकृतेऽसमर्थत्वात्, अन्यथा त्रैलोक्यमदरिद्रतामविकलामञ्चैत । इदमेवाभिप्रेत्य व्यधिकरणदीधिती "विशेषणतावच्छेदकविशिष्टज्ञानस्य विशिष्टवैशिष्ट्यप्रत्ययहेतुत्वात्, अभावप्रत्ययो हि घटत्वादिविशिष्टस्य घटादेः प्रतियोगित्वमवगाहमानो विशेषणस्यापि घटत्वादेः तदवच्छेदकत्वमवगाहते, न स्वातन्त्र्येण 'घटी नास्तीत्येव प्रतीतेः । तदिहाऽभावप्रत्ययो यदि व्यधिकरणेन धर्मेण विशिष्टं प्रतियोगिनं नावगाहते नावगाहते एव तदा तस्यापि प्रतियोगितावच्छेदकत्वम् । अथाऽवगाहते तर्हि भ्रम एव न हि ततोऽर्धसिद्धिरिति भवि: " <- (व्य. दी. पृ. २७६ ) इत्युक्तम् । + वस्तुतस्तु घटत्वादेः घटादिवृत्तित्वेन घटादिवृत्ति प्रतियोगितावच्छेदकत्वमेव । घटत्वादेः घटादिप्रतियोगिकात्यन्ताभावविशेषणतावच्छेदकत्वादेव पदादिप्रतियोगिकात्यन्ताभावीय प्रतियोगितानवच्छेदकत्वमेव । अतो न 'घटत्वेन पटो नास्ती' त्यादौ पटाद्मभावप्रतियोगिता स्वव्यधिकरणी भूतघटत्वादिधर्मावच्छिन्ना संभवति । अतः प्रतियोगिताव्यधिकरण धर्मावच्छिन्नप्रतियोगिताकात्यन्ताभावस्याप्रामाणिकत्वमेवेति सिद्धम् । अत एव द्वितीयभङ्गस्याऽप्यप्रामाण्यं न केनाऽपि दूरीकर्तुं शाशक्यते । इत्थमेव सकलाप सप्तभङ्गी अप्रामाणिकीति सिध्यति । स्थल में यदि घटत्व को ही पटप्रतियोगि काभावनिरूपित प्रतियोगिता का अवच्छेदक माना जाय तो उपर्युक्त नियम के अनुसार घटत्वादि का पटादिप्रतियोगिक अभाव के विशेषणता अवच्छेदकविधया भान मानना आवश्यक है। अर्थात् अभाव के विशेषणीभूत पटादि में घटत्वादि धर्म का भान मानना आवश्यक है, क्योंकि घटत्वादि धर्म में पटादिप्रतियोगिक अभाव के प्रतियोगितावच्छेदकत्व के भान की सामग्री और पटादिप्रतियोगिक अभाव के विशेषणतावच्छेदकत्व के ज्ञान की सामग्री एक ही है । दोनों की सामग्री एक ही होने की वजह घटत्वादि में अभावविशेषणतावच्छेदकत्व के ज्ञान के लिए अतिरिक्त कारण की अपेक्षा तो है ही नहीं । मगर घटत्वादि में पटादिप्रतियोगिकाभावविशेषणतावच्छेदकत्व का ज्ञान प्रमात्मक होना तो नामुमकिन है, क्योंकि | अभाव के विशेषणीभूत पटादि में घटत्वादि नहीं रहता है। विशेषण में न रहने वाला धर्म विशेषणतावच्छेदक कैसे बन सकता है ? अतः घटत्वादि का अभावविशेषणीभूत पटादि के विशेषणरूप से भान प्रमात्मक नहीं हो सकता । हाँ, भ्रमात्मक तादृश बोध हो सकता है कि 'घटत्वादि अभावविशेषणीभूत पटादि में रहता है' । मगर भ्रम तो वस्तुसाधक नहीं होता है । अतः तादृश भ्रमात्मक बोध से घटत्वादि में पटादिप्रतियोगिकाभाव का विशेषणतावच्छेदकत्व या प्रतियोगितावच्छेदकत्व की सिद्धि नहीं हो सकती । घटत्वादि तो घटादि में रहते हैं । अतः घटादिप्रतियोगिक अभाव के विशेषणतावच्छेदक बनने के सबब घटत्वादि घटादिप्रतियोगिकाभाव के प्रतियोगितावच्छेदक बन सकते हैं। मगर पटादिप्रतियोगिक अभाव का प्रतियोगितावच्छेदकत्व तो घटत्वादि में नामुमकिन ही है, क्योंकि पटादिअभाव का विशेषणतावच्छेदक घटत्वादि नहीं बन सकता है यह प्रतिपादन हम ऊपर कर चुके हैं। यहाँ यह तो नहीं कहा जा सकता कि “व्यधिकरणधर्मावच्छिन्नप्रतियोगिताक अभाव समानाधिकरण -
SR No.090487
Book TitleSyadvadarahasya Part 2
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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