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________________ XVI मध्यमस्याद्वादरहस्ये खण्डः २ * विषयमार्गदर्शिका विषय .0 0 0 .0 0 आलोकादीनां क्षयोपशमविशेषे उपक्षीणत्वम् योग्यताविशेष का निर्वचन आलोकसंयोगकारणतापक्ष में विनिगमनाविरह आलोकसंयोगकारणनायां विनिगमनाविरहः चक्षुःसंयोगकारणतावादिमतप्रकटीकरणाम् | धर्मगौरव की भाँति सम्बन्धगौरव भी दोष है . स्याद्वादी ३३३ सम्बन्धगीरवस्यापि दूषणत्वम् विषयनिष्ठप्रत्यासत्ति से चक्षसंयोगकारणता में गौरव - आत्मनिष्ठप्रत्यासत्तिवादी षडविधकार्यकारणभावद्योतनम् आत्मनिश्प्रत्यासत्ति से आलोकसंयोग में कारणताकल्पना ३५३ ३०४ ३५६ ३३६ ३३६ Tr विषय अभिनवरीत्याऽपसिद्धान्तनिराकरणम् तामसेन्द्रियकल्प-तातातिकदेशीयमत इन्द्रिपान्तराग्रााग्राहकत्व ही भित्रेन्द्रियत्व का व्यवस्थापक ३५१ तामसेन्द्रियसाधनम् अन्धकारसंयोगावच्छेदकावच्छिन्न तामससंयोग कारण मीमांसाश्लोकवार्तिकसंवादः चांदनी में उल्लूचाक्षुष का स्वीकार तामसेन्द्रियकल्पना अप्रामाणिक - स्वादादी 'पश्यामी'ति विषयतानियामकविचारः तामसेन्द्रियवादिमत में दोषद्वय . स्पाद्वादी तमःस्थघटादिचाक्षुपमञ्जनादिजन्यम् मनुष्यतामसीय प्रत्यक्ष में अन्धकारहेतुता - पूर्वपक्ष अञ्जनादेः चाक्षुषसहकारित्वविचारः अंजनादिसंस्कार से रात में बटादि का चाक्षुष ही होता है . पूर्वपक्ष जारी अंजनादि में चाक्षुषकारणतावच्छेदकवादिमत का निराकरण ३५७ अपरमताऽस्वरसवीजाऽऽवेदनम् तामसेन्द्रिवपक्ष में महागौरव । उत्तरपक्ष द्विविधयोग्यताप्रतिपादनम् .. पट्टाभिराममतद्योतनम् ३६. परमत में भी स्वभाव का आश्रय अनिवार्य -स्यादादी ३६. स्वभावपक्षाश्रयणविमर्शः ३६१ ज्ञान आत्मस्वभाव है . स्यादादी ३६१ आत्मनो ज्ञानस्वभावत्वसाधनम् ३६२ तामसेन्द्रिपकल्पना में अन्योन्याश्रय दोष का निराकरण तमोद्रव्यत्वपक्षेऽन्योन्याश्रयापाकरणम् आलोकज्ञानाभाव ही अन्धकार है . प्रभाकरमत ३६३ सम्बन्धद्वितयेन चाक्षुषाभावस्याऽन्धकास्त्वविचारः प्रभाकरमतनिकंदन 'आटोकज्ञानाभाववान् अहं' प्रतीति की प्रभाकरमत में अनुपपत्ति प्राभाकरमते तमसभाक्षुपन्वाऽसङ्गतिः 'तमः पश्यामि' इत्यादि प्रतीति की प्रभाकर मत में अनुपपत्ति जात्यन्धानामपि चाक्षुपन्वोपगमः प्रकामाकरूपाभाव ही अन्धकार - प्रगल्भ प्रकाशकरूपाभावतमोवादिप्रगल्भमतखण्डनम् प्रगल्भमतनिराकरण चाक्षुषे स्पर्शस्याऽकारणलाऽऽवेदनम् उद्धृतरूप-स्पर्शीभव में बहिरिन्द्रियजन्य द्रव्यप्रत्यक्ष की कारणता नामुमकिन ३६२ आलोकसंयोगकारणतापक्षे लायवप्रकाशनम् चक्षुसंयोग को आत्मनिष्ठ प्रत्यासत्ति से कारण मानने में गौरव लयुसम्बन्धसम्भवे गुरुसम्बन्धकल्पनाया अन्याय्यत्वम् ३३७ आलोकसंयोगकारणतापक्ष में विनिगमनाविरह . स्याद्वादी ३३५ अभिनवदोषद्वपाऽऽविष्करणम् अन्धकार में द्रव्यत्त्वसिद्धि उलूकादिचाक्षुषेन व्यभिचारदूपणम् आलोकसंयोगकारणतापक्ष में व्यभिचार परमत में स्वाभाविकत्व का निर्वचन दशक ३४० स्वाभाविकत्वनिर्वचनाऽसम्भवः ३४५ आलोकेतरासंस्कृतचाजन्यत्त्व स्वाभाविकत्वस्वरूप नहीं है . स्वादादा ३४१ आलोकसंयोगकारणताविधार: कार्यतावच्छे दकधर्मलाघब से अन्धकार में द्रज्यत्व की सिद्धि . स्याद्रादा विजातीयाऽऽलोककल्पना उल्लू आदि का चाक्षुष आलोकविदोषजन्य - नैयायिकदेशीमत ३४३ अतिप्रसक्तधर्मेण कारणताऽभ्युपगमः ३४५ शशधरमतसमालोचना | उल्लूचाक्षष में विजातीय आलोक की कारणता अप्रमाण - स्याद्वादी ३४६ विजातीयचक्षुमनोयोग चाक्षुपजनक - उच्छृखलमत ३४६ आहुःपदप्रयोजनप्रकाशनम् ३४७ मथुरानाथमतसमीक्षा ३४८ आलोककालीन चाक्षुष को कार्य मानने पर दोषपरम्परा ३५८ विजातीयचक्षुमनोयोगकारणताविचारः अन्धकारसंयुक्तद्रव्यविषयक चाक्षुष ही विजातीयसंयोग का कार्य है . स्याद्वादी Ad Ad MEEmm ३६८
SR No.090487
Book TitleSyadvadarahasya Part 2
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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