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XII
मध्यमस्याद्वादरहस्ये खण्डः २
म. की महती कृपा से, परमोपकारी कर्मसाहित्यनिष्णात न्यायविशारदपट्टधर सिद्धान्तदिवाकर श्रीमद् विजय जयघोषसूरिजी महाराज की प्रोत्साहक प्रेरणा से, दीक्षागुरुदेव भीमभवोदधित्राता प्रभावक ज्वलंतवैरागी श्रीमद् हेमचन्द्रसूरिजी म. के असीम उपकार से, प्रथमखण्ड के संशोधक पूज्यपाद विद्यागुरुवर्य पंन्यासप्रवर श्री जयसुंदरविजयजी के मंगल मार्गदर्शन से, महोपकारी पूज्यपाद शासनप्रभावक, पद्ममणितीर्णोद्धारक गुरुदेवश्री विश्रकल्याणविजयजी महाराज की अनहद कृपा से, संपूर्ण टीकास्य के संशोधक विद्वद्वरेण्य तपोरत पूज्य मुनिराजश्री पुण्यरत्नविजयजी म. की निःस्वार्थ परोपकाररसिकता से, विद्यागुरुवर्य पूज्य मुनिराजश्री अभयशेखरविजयजी म., श्री अजितशेखरवि. म, एवं श्रद्धेय कल्याणमित्र मुनिराजश्री कल्याणबोधिविजयजी म., मुक्तिबल्लभविजयजी म. युगसुदर विजयजी म. आदि के निव्याज स्नेह से तथा सहवती स सहकारभाव से मध्यमस्याद्वादरहस्य ग्रन्थ की टीकाद्वय की रचना और सम्पादन के द्वारा जो पावन पुण्य का उपार्जन हुआ उससे विश्वकल्याण एवं विश्वमङ्गल हो यही एक मङ्गलकामना ।
मुनि यशोविजय ॐकारसूरि आराधनाभवन, सुरत - २०४५ पोष सुद-१
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TULNA