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________________ स्वतन्त्राभूत ६श् 3 सज्जनचित्त वल्लभ कौन जैनसाहित्य प्रेमी आचार्य श्री मल्लिषेण जी के नाम से अपरिचित होगा ? आचार्य श्री मल्लिषेण का समय ईसवी सन् १०४७ का है। आचार्यदेव की यह प्रेरणादायक लघु कृति है। इस कृति में मात्र २५ पद्य हैं। एक-एक पद्य में अर्थगाम्भीर्य व उपदेश शैली का पूट है। एक-एक पद्य शिथिलाचार का विरोध और साधक शिष्य के लिए सन्मार्गदर्शन करने वाला है। & * ज्ञानांकुशम् इस ग्रन्थ का सरल हिन्दी अनुवाद परम पूज्य युवामुनि श्री सुविधिसागर जी महाराज ने किया है। सहयोग राशि :- ११ रुपये परम पूज्य योगी सम्राट् श्री योगीन्द्रदेव आचार्य अध्यात्मपिपासु भव्यों के लिए महान मार्गदर्शक है। आचार्य श्री के करकमलों से अक्षरविन्यासित यह लघुकाय कृति है। इस ग्रन्थ में मात्र ४४ श्लोक हैं। ध्यान के विषय में अत्यन्त उपयोगी सामग्री इस ग्रन्थ में पायी जाती है। परम पूज्य जिनवाणी कण्खभरण, मुनिश्री सुविधिसागर जी महाराज ने अनेक आगम, मनोविज्ञान, ध्यानविज्ञान और शरीरविज्ञान का सहयोग लेकर इस कृति का अनुवाद किया है। सहयोग राशि :- ३० रुपये • वैराग्यमणिमाला वैराग्य को परिपुष्ट करने के इच्छुक भव्यों को इस ग्रन्थ का स्वाध्याय अवश्य करना चाहिये। इस ग्रन्थ के रचयिता परम पूज्य आचार्य श्री विशालकीर्ति जी महाराज हैं। ग्रन्थ की भाषा अलंकारिक है । ग्रन्थ में कुल ३३ श्लोक हैं। परम पूज्य जिनवाणी के अनन्य उपासक, मुनिश्री सुविधि सागर जी महाराज ने इस कृति का अनुवाद किया है। सहयोग राशि :- १५ रुपये
SR No.090486
Book TitleSwatantravachanamrutam
Original Sutra AuthorKanaksen Acharya
AuthorSuvidhisagar Maharaj
PublisherBharatkumar Indarchand Papdiwal
Publication Year2003
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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