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अनुवादक का परिचय
औरंगाबाद शहर धार्मिक और सामाजिकदृष्टि से अनेक सन्तों, विचारकों तथा सुधारको का जन्म या कार्यक्षेत्र रहा है । इसी । शहर में १९-३-१९७१ को रात्रिकालीन अन्धःकार में तमस से द्वंद्व करने वाले जयकुमार नामक पूर्णचन्द्र का जन्म हुआ । श्रीमान् इन्दरचन्द जी पापड़ीवाल और माता कंचनबाई की आँखों का तारा यह है सपूत एकदिन विश्ववन्ध श्रमणेश्वर के पद पर आसीन हो जायेगा। - यह शायद उससमय किसी ने सोचा तक नहीं होगा ।
जयकुमार बचपन से ही विद्याव्यासंगी, परिश्रमी, सुहास्यवदनी, प्रज्ञापुंज, विनयी दृढ़प्रतिज्ञ थे । किसी भी कार्य को प्रारम्भ करके पूर्णत्व तक ले जाना उनके स्वभाव में ही था । दया और सहयोग । उनके गुणालंकार थे । बडों की विनय करना परन्तु अपनी बात स्पष्ट शब्दों में व्यक्त करना तो उनकी विशेषता थी । भय भी उनके नाम । से भय खाता था । विनोदप्रियता और अजातशत्रुता उनको प्राप्त हुआ। सृष्टि का उपहार ही था ।
जो परिस्थितियों से दो हाथ करना नहीं जानता यह कभी। * महान नहीं बन सकता । संघर्ष ही उत्कर्ष का बीज है । जन्म के उपरान्त तीसरे दिन आपकी आँखों में नासुर नामक रोग हुआ । अब तक उसकी छह बार शल्यचिकित्सा हो चुकी है । बचपन से आपकी है कमर खराब है, फलतः पाँच वर्षपर्यन्त आप बैठ नहीं पाते थे । यद्यपि अनेकों उपचार किये गये, परन्तु आज भी उपर्युक्त ये दो अंग कमजोर । अवस्था में हैं ।
जयकुमार ने पाँचवीं कक्षा तक का अध्ययन औरंगाबाद में ही किया। तत्पश्चात् तीन वर्षों तक का अध्ययन उन्होंने बाल I ब्रह्मचर्याश्रम-बाहुबली (कुम्भोज) में किया। शिक्षा के अन्तिम दो वर्ष । पुनः औरंगाबाद में ही व्यतीत हुये। आपने लौकिक दृष्टि से मात्र । दसवी कक्षा तक ही अध्ययन किया है, परन्तु आपकी अध्ययन शीलता ने समस्त उपमानों को पीछे छोड़ दिया है। आप निजी है