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• स्वतन्त्ररानामृतम्
स्वतन्त्र वचनामृतम्
जीवाजीवैक भावाय, प्राणैर्भावतदन्यकैः । कार्यकारणमुक्तं तं मुक्तात्मानं उपास्ते || १ ||
अर्थ :
भावप्राणों से युक्त जीत और उससे रहित अजीत का वर्णन करने वाले, कार्य-कारणभाव से मुक्त मुक्तात्माओं की हम उपासना करते हैं ।
विशेषार्थ :
जीव और अजीव तत्त्व के प्ररूपक, परद्रव्य के साथ कार्य और कारणभाव से मुक्त परमात्मा की हम उपासना करते हैं । अथ मोक्ष स्वभावाप्तिरात्मनः कर्मणां क्षयः । सम्यग्दृग्ज्ञानचारित्रैः, अविनाभावलक्षणैः ||२||
अर्थ :
अविनाभाव लक्षण वाले सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के व्दारा स्वभाव को प्राप्त हुए आत्मा के समस्त कर्मों का क्षय हो जाना ही मोक्ष है ।
विशेषार्थ :
जैनागम के महाग्रन्य तत्त्वार्थसूत्र में प्रथम सूत्र के द्वारा मोक्षमार्ग की चर्चा करते हुए आचार्य भगवन्त श्री उमास्वामी महाराज ने लिखा है
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ।
अर्थात् :- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ये तीनों समुदितरूप से मोक्ष का मार्ग है ।
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनों को