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________________ धर्मों को ही नहीं अपितु) बन्ध और मोक्ष को (तथा) फल को (भी स्वीकार करता है)। किनके (फल को)? उन बन्ध और मोक्ष के, किनसे प्राप्त करेगा? उन-उन कारणों से। यदि ऐसा नहीं है, तो 'ईश्वर आदि ही करते हैं'-ऐसी मान्यता अज्ञानचेष्टा है। कैसे? अपने आप ही। हिन्दी अनुवाद (संस्कृत टीका)-जीव ये उपयोगादि पूर्वोक्त बहुत प्रकार के धर्मों के स्वरूप को, कर्मबन्ध और उसका नाश ऐसे बन्ध-मोक्ष-दोनों को, (उन) बन्ध और मोक्ष के फल को एवम् उन-उन उपयोगादि के कारणों से पुनः आत्मा की स्वीकार करता है। आत्मा अनन्तधर्मात्मक स्वभाववाला होने से कहे गये उपयोगादि गुण (उसके) उपलक्षण हैं-ऐसा अभिप्राय है। विशेषार्थ-विगत आठ पद्यों में अनेक धर्मयुगलों की आत्मा में अपेक्षासहित निर्विरोध उपस्थिति बताते हुए आत्मा की अनेकान्तात्मकता सिद्ध की है। अब उस चर्चा का उपसंहार करते हुए ग्रन्थकर्ता लिखते हैं कि उक्त अनन्तधर्मात्मक अनेकान्तरूपता आत्मा में सकारण एवं सार्थक है। आत्मा अनेकान्तरूप पारमार्थिक वस्तुविशेष है तथा उसके जो बन्धन एवं मोक्ष का वर्णन सिद्धान्तग्रन्थों में उपलब्ध होता है, वह भी सहेतुक है। आत्मा अज्ञानमय भाव से स्वयं ही बन्धन को प्राप्त होता है और ज्ञानमय पुरूषार्थपूर्वक स्वयं ही मुक्त होता है।' इस प्रकार कर्मबन्धन करना, कर्मफल को भोगना एवं कर्मबन्धन से मुक्त होना - ये सब प्रतिक्रियायें अपने-अपने कारणों/साधनों से घटित होती हैं। - इस पद्य में यह संकेतमात्र किया गया है। उन कारणों का कथन आगामी पद्यों में आया है। । स्वयं कर्तृत्व एवं भोक्तृत्व का निरूपण करने से जो ईश्वरकर्तृत्ववादी तनु-करण-भुवनादि का कर्ता ईश्वर को मानते हैं, उसका निराकरण हो जाता है। संसार में परिभ्रमण एवं इससे मुक्त होना-इन दोनों में ईश्वर या अन्य किसी पदार्थ का कोई योगदान नहीं, जीव अज्ञानमय भावों से स्वयं बंधता है और ज्ञानमय भावों से स्वयं ही उससे छूटता है।" 1. स्वयं कर्म करोत्पात्मा, स्वयं तत्फलमश्नुते। स्वयं भ्रमति संसारे, स्वयं तस्माद् विमुच्यते।। 2. विशेष द्र, 'आप्तपरीक्षा' 9151-581 3. स्याद्वादमंजरी, कारिका 6 एवं टीका; न्यायकुमुदचन्द्र पृ0 101.114 । 4. द्र० समयसार, गा० 265 एवं 270 |
SR No.090485
Book TitleSwaroopsambhodhan Panchvinshati
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorSudip Jain
PublisherSudip Jain
Publication Year1995
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Metaphysics
File Size3 MB
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