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________________ उत्थानिका (कन्नड़ टीका)-इतनंतजानादिगुणसमन्वितनप्प आत्मसद्भावं भव्यजीवंगळ्गे प्रतिपादिसि योग-सौगतादिगळंतादडे आत्मनत्तणि ज्ञानं भिन्नमो अभिन्नमो येंदु पूर्वपक्षमं माडिदवरिगे परिहारार्थवागि पेळल्वेडि बंदुदु उत्तरश्लोक उत्थानिका (संस्कृत टीका)-निजधर्माज्ञानादात्मनो भिन्नाभिन्नत्वं कथमिति चेदाह ज्ञानाद् भिन्नो न नाभिन्नो, भिन्नाभिन्न: कथंचन । ज्ञानं पूर्वापरीभूतं, सोऽयमात्मेति कीर्तित: ।। ३।। कन्नड़ टीका-(भिन्नो न) आत्मं सर्वथा भिन्ननल्स (अभिन्नो न) सर्वथा अभिन्ननल्लं, आवुदरत्तणि? (ज्ञानात्) ज्ञानदत्तर्णिदं । (तर्हि कीदृशः) अन्तादेन्तप्प? (भिन्नाभिन्न:) ज्ञानदत्तणिं भिन्नमुं अभिन्नमुमप्पं, (कथम्) एंतु? (कथंचन) आबुदानुमोंदु सजादिसद्भूतव्यवहारमयदि भिन्नं, शुद्धनिश्चयनयदिनभिन्नं । (कस्मात्) आवुटु कारणदिद? (ज्ञानं पूर्वापरीभूतम् } अन्वितमागि कारणकार्यरूपमप्पुरि (सोऽयमात्येति) आ आत्मनेंदितु (कीर्तितः) पेळेपदुदु । ___ संस्कृत टीका-(ज्ञानात्) निजधर्माप्ज्ञानात् (आत्मा) जीव: (भिन्नः) पृथक् (न) न च (अभिन्न:) ज्ञानादभिन्नो (न) न च (कथंचन) केनचित् प्रकारेण (भिन्नाभिन्न:) ज्ञानाद भिन्नोऽभिन्नश्च स्यात् । (पूर्वापरीभूतम्) ज्ञेयापेक्षया पूर्वञ्च तदपरञ्च तत् पूर्वापर, न पूर्वापरमपूर्वापर, अपूर्वापरमिदानी पूर्वापर भूत-पूर्वापरीभूतं (ज्ञानम् ) ज्ञानमेव (स:) तच्चैतन्यस्वरूप आत्मा, इत्येवं (कीर्तितः) प्रतिपादितः । तेन कारणेन गुण-गुणिनो द्रव्यकृतभेदरहित्येन ज्ञानादभिन्नश्च, तथा भवन्नपि गुण-गुणीति-विकल्परूपेण वक्तव्य: संज्ञादिभेदेन मानाद्भिन्नश्च भवतीति तात्पर्यार्थः। उत्थानिका-(कन्नड़) इस प्रकार अनन्तज्ञानादिगुणों से समन्वित आत्मा के अस्तित्व को भव्य जीवों के लिए प्रतिपादित करके योग-सौगत (बौद्ध) आदि मतों का निराकरण करने के बाद आत्मा ज्ञान से भिन्न है या अभिन्न है? इस तरह के पूर्वपक्ष को मानने वालो (वैशेषिकों आदि) के मत का निरसन करने के लिए प्रतिपादन करता हुआ आगामी (यह) श्लोक आया है। उत्थानिका-(संस्कृत)-ज्ञानरूप निजधर्म से आत्मा का भिन्नत्व और अभिन्नत्व कैसे है? ऐसी शंका होने पर कहते हैं। खण्डान्वय-ज्ञानात् ज्ञान से, (आत्मा) भिन्नो न=सर्वथा भिन्न नहीं है,
SR No.090485
Book TitleSwaroopsambhodhan Panchvinshati
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorSudip Jain
PublisherSudip Jain
Publication Year1995
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Metaphysics
File Size3 MB
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