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________________ श्लोकप्रमाण आकार में रचित 'वृत्ति' होने से इसकी 'अष्टशती' संज्ञा सार्थक है। इसमें अनेकान्त और सप्तभंगी सिद्धान्तों का विशद विवेचन हुआ है। इसमें मूलग्रन्थ में आगत एकान्तवादियों के खण्डनों के पूर्वपक्ष प्रस्तुत कर उन वर्णनों को सुस्पष्ट कर दिया गया है। अन्त में प्रमाण और नय की चर्चा भी इसमें अकलंकदेव ने की है। इसी 'अष्टशती' के आधार पर आचार्य विद्यानन्द स्वामी ने आठ हजार श्लोकप्रमाण 'अष्टसहस्री' नामक गढ़-गम्भीर टीका लिखी है, जिसके बारे में कहा गया है ___ "श्रोतव्याऽप्सहस्री श्रुतैः किमन्यैः सहस्रसंख्यानैः ।" स्वतन्त्र ग्रन्थ:- 1. लघीयस्त्रय सविवृत्ति-यह प्रमाणप्रवेश, नयप्रदेश एवं निक्षेपप्रवेश नामक तीन छोटे-छोटे प्रकरणों का संग्रह है। इसके निक्षेपप्रवेश' नामक प्रकरण को 'प्रवचनप्रवेश' संज्ञा भी दी जाती है। इसमें कुल 78 (अठहत्तर) कारिकामें हैं, किन्तु मुद्रित लघीयस्त्रय मात्र 77 (सतहत्तर) ही कारिकायें हैं। 35वीं (लक्षणं क्षणिकैकान्ते...) कारिका इसमें नहीं है। इसमें प्रथम प्रमाणप्रवेश' में 1. प्रत्यक्ष परिच्छेद, 2. विषय परिच्छेद, 3. परोक्ष परिच्छेद और 4. आगम परिच्छेद-ये चार परिच्छेद हैं; शेण 'नय प्रवेश' एवं प्रवचन प्रवेश' को परिच्छेद' संज्ञा देकर इसके छह परिच्छेद भी कहे गये हैं। इस पर अकलंकदेव ने संक्षिप्त विवृत्ति भी लिखी है। यह विवृत्ति कारिकाओं की व्याख्यापरक न होकर सूचित विषयों की पूरक है। तथा यह मूलश्लोकों के साथ ही साथ लिखी गयी है। धर्मकीर्ति के 'प्रमाणवार्तिक' की वृत्ति भी इसीप्रकार की है। विद्वानों ने इसे अकलंकदेव की पहली मौलिक दार्शनिक रचना माना है। 2. न्यायविनिश्चय सवृत्ति:- 'विनिश्चय' पद के अन्त्य प्रयोगवाले ग्रन्य अकलंकदेव से पहले भी लिख जाते रहे हैं । बौद्ध दार्शनिक धर्मकीर्ति का 'प्रमाण विनिश्चय' नामक ग्रन्थ तो उपलब्ध ही है, जबकि तिलोयपण्णत्ति' में लोकविनिश्चय' नामक ग्रन्थ की सूचना प्राप्त होती है। इसी परम्परा में अकलंकदेव ने 480 कारिकाओं वाले इस ग्रन्थ की रचना की है। ___ इस ग्रन्थ में कुल तीन प्रस्ताव है। प्रत्यक्ष प्रस्ताब' नामक प्रथम प्रस्ताव में 169 1/2 कारिकाओं द्वारा प्रत्यक्ष प्रमाग के विषय में विस्तारपूर्वक चर्चा की गयी है तथा इस विषय में अन्यमतावलम्बियों की प्रत्यक्ष-विषयक मान्यताओं की तार्किक समीक्षा भी की गयी है। द्वितीय 'अनुमान प्रस्ताव में 216 1/2 कारिकायें
SR No.090485
Book TitleSwaroopsambhodhan Panchvinshati
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorSudip Jain
PublisherSudip Jain
Publication Year1995
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Metaphysics
File Size3 MB
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