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________________ 4. 1. 5. ग्रन्थकर्ता का नाम सभी प्रतियों में भट्ट अकलंकदेव ही माना गया है। जबकि समालोचकों ने मूलग्रंथकर्त्ता के रूप में 'महासेन पण्डितदेव' के नाम की भी संभावना व्यक्त की है। 2 भी आ गया है। I प्रकाशित प्रतियों के संकेत 'वृहज्जिनवाणी संग्रह', जयपुर में जो स्वरूप- सम्बोधन' की प्रति प्रकाशित है, उसके संपादक डॉ० हुकमचंद भारिल्ल हैं, अतः उसे हम 'भारिल्त प्रति' संज्ञा देंगे। 3. प्रकाशित प्रतियों के सम्पादकों ने अपनी आधार प्रतियों के बारे में कोई परिचय नहीं दिया है, जो कि वैज्ञानिक सम्पादन-पद्धति के अनुसार अनुचित है । - 1. डॉ० महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य द्वारा सम्पादित 'लघीयस्त्रयादि संग्रह' में जो 'स्वरूप सम्बोधन' प्रकाशित है, उसे हम उसके सम्पादक के नाम पर 'महेन्द्र प्रति' संज्ञा देंगे। 'शान्तिसोपान' में जो प्रति प्रकाशित है, उसके संकलनकर्ता 'ब० ज्ञानानन्द न्यायतीर्थ' हैं। अत: इस प्रति को हम 'ज्ञानानन्द प्रति' संज्ञा देंगे । 4. स्वरूप- सम्बोधन प्रवचन में जो इस ग्रन्थ के पाठ प्रकाशित हैं, उनका उल्लेख हम इसके प्रवचनकर्ता क्षुल्लक मनोहरलाल जी वर्णी के नामानुसार 'वर्णी प्रति' के नाम से करेंगे। हस्तलिखित प्रतियों के संकेत चूंकि हस्तलिखित प्रतियों के पाठों में प्रायः समानता है, अतः सभी प्रतियों को अलग-अलग नाम देना व्यावहारिक नहीं होगा। क्योंकि प्रतियों के नाम-संकेत पाठभेदों के वर्गीकरण के लिए किये जाते हैं, अतः हम इन्हें निम्नानुसार वर्गीकृत करेंगे प्रतियों के प्रायः समस्त कन्नड़ टीका वाली प्रतियों एवं मूलपाठ वाली शुद्ध पाठ समान हैं। जिनमें लिपिकार की अज्ञानता के दोष अतिस्पष्ट हैं, अतः उन प्रतियों के पाठ भेदों का उल्लेख यहाँ नहीं किया गया है और चूंकि XIV
SR No.090485
Book TitleSwaroopsambhodhan Panchvinshati
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorSudip Jain
PublisherSudip Jain
Publication Year1995
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Metaphysics
File Size3 MB
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