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________________ सूक्तिमुक्तावली अग्निः शैत्यं शीतलत्वं भजति शीतो भवति । पुनर्यदि कधचित् क्ष्मापीठं पृथ्वीमंहलं सकलस्यापि जगतो विश्वस्य उपरि भवेत् तदपि सत्त्वाना वधो हिंसा क्यापि द्रव्यक्षेत्रकालादी सुकूतं पुण्यं न प्रसूयते न जनयति || २६ ॥ (मर्थ-यदि किसी प्रकार पत्थर जल में तिरने लग जाय, यदि सूर्य पश्चिम दिशा में उदय हो जाय, यदि अग्नि शीतल हो जाय, यदि पृश्वीतल समस्त जगत के ऊपर हो जाय अर्यात् सारा संसार लोट पोट हो जाय, तो भी जीवों की हिंसा में कभी भी धर्म अर्थात पुण्य का बन्ध नहीं होता है यह निश्चित अटल सिद्धान्त भावार्थ-उपरोक्त बातें यद्यपि असंभव हैं कदाचित संभव हो तो हों, परन्तु जीवों को हिंसा में कभी भी धर्म नहीं हो सकता। मालिनीछन्दः स कमलवनमग्नेवासरं भास्वदस्तादमृतमुरगवक्त्रात्साधुवाद विवादाव रुगपगममजीर्णाज्जीवितं कालकूटा-- १ दभिलपति वधाद्यः प्राणिनां धर्ममिच्छेत् ॥२७॥ viear - 4 पुमान प्राणिना sit u.ntsो स भग्न सकाशात कमलवनं अभिलपति वाञ्छति । तथा भास्वदस्तात सूर्यास्तमनात वासरं अभिलपति । पुनर्षिवाक्षात् कलहात साधुवाद कीति अभिलपति । तथा अजीतू रुगपगमं रुजो रोगस्य अपगर्भ
SR No.090482
Book TitleSuktimuktavali
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorAjitsagarsuri
PublisherShanti Vir Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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