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________________ १०६ सूक्तिमुक्तावली प्रकार ) प्राप्त होती है तथा मुक्ति भी उसकी इच्छा करती है । ऐसा जान कर पात्रोंको सदा काल वान देना योग्य हैं भूयोप्याह- मन्दाक्रान्ता छन्दः तस्यासन्ना रतिरनुचरी कीर्तिरुत्कण्ठिता श्रीः । स्निग्धा बुद्धिः परिचयपरा चक्रवर्तित्व ऋद्धिः ।। पाणी प्राप्ता त्रिदिवकमला कामुकी मुक्तिसंपत् । सप्तक्षेत्र्यां वपति विपुलं विचबीजं निजं यः ||८०|| स्वासणा - यः पुमान् निजं यं विपुलं प्रचुरं विसमेव बीजं सप्तक्षेत्रयां जिनभवनं १ जिन बिंबं २ पुस्तकं ३ चतुर्विधसंघ भक्ति रूपायां वपति तस्य पुरुषस्य रतिः समाधिराखन्ना समीपवर्तिनी स्थातथा तस्य कीर्तिरनुचरी सेविका स्यात्, तथा तस्य श्री संपत घनधान्यहिरण्यरूपा उत्कंठिता मिलनोत्का स्यात्तथा तस्य बुद्धिरोत्यधिकाया स्निग्धा स्नेहवती स्वात्तथा तस्य चक्रवतित्व ऋद्धिः परिचयपरा सार्वभौम विभूतिः सुपरिचिता स्थान । तथा त्रिदिवस्य स्वर्गस्य कमला श्री: पाणौ हस्ते प्राप्ता संगता स्याशथा मुक्तिसंपत सिद्धिरमा कामु की साभिलाषा स्याद्यः सप्तक्षेत्र्यां निजं विश्वं बीजं वपति ॥ ८ अत्र धन्यसालिभद्र चंदनबाला सागर चंदन ष्ठि कथाः || अर्थ -- जो पुरुष अपना बहुत धन रूपी बीज सात क्षेत्रों में बोता है ( सातक्षेत्र:- जिन प्रतिमा, जिनमन्दिर, श्रुतज्ञान, मुनि, आर्यिका श्रावक श्राविका, ये सात क्षेत्र है) प्रीति उसकी दासी बन जाती है, कीर्ति उसकी दासी रहती है, लक्ष्मी उसके लिये उत्क
SR No.090482
Book TitleSuktimuktavali
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorAjitsagarsuri
PublisherShanti Vir Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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